ब्लौग सेतु....

24 जून 2017

अंतिम अनुभव

उम्र  के  अंतिम  पड़ाव  पर 
सुध  बुध   भी   खो  गयी 
बंद कमरे में एक छोटी सी खिड़की 
मेरी  सारी  दुनिया  हो  गयी 
जो  मुझे  साँझ  और  सवेरे   
 से  परिचित  करवाती  थी  
झरोखे से आती सूरज की रौशनी 
सिर्फ एक कोने तक आती  थी 
ये जर्जर शरीर अपनी ही हडियों का 
 बोझ  भी  नहीं  उठा  पाता  था 
तन्हाई अब सिर्फ साथी थी  अपनी 
इसी से अपने दिल को बहलाता था 
जिंदगी का सफर जब शुरू हुआ था 
तब  साथ  में  इक  मेला  था 
मगर  अब परिवार के बीच  भी 
मैं  बिलकुल  अकेला  था 
मुठी  भर  दवाइयां  ही 
अब  आगे  की सच्ची साथी थी 
अंतिम  अनुभव  में ये  सीखा 
कि ये ही अंत तक साथ निभाती थी 
अगली  सुबह  ऐसा  लगा  जैसे 
मैं  हवा  में  उड़  रहा  था 
मेरा शरीर अंतिम सफर के  लिए 
चार कन्धों पर आगे बढ़ रहा था 
उस  टूटे  हुए  पिंजरे  से  
अब  पंछी  आज़ाद  हो  चुका  था 
काफी  इंतज़ार के बाद ही सही 
इक नए सफर का आगाज़ हो चुका था 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...