घनन घनन घन गाजे घन
सन सन सनन समीर
छनन छनन छन पायलें
कल कल नदिया नीर
कुहू कुहू कुक कोयली
पिहू पिहू मित मोर
हर रही चित चंचल को
सुखद सुहानी भोर
अंबर तक उड़ता आँचल
लहरे मन के तीर. घनन घनन घन........
मगन मगन मन मीत का
बहके बहके नैन
मचलूँ निरखूँ रूप को
पाऊँ कैसे चैन
कड़वी तुमसे दूरियाँ
मीठी मन की पीर. घनन घनन घन........
खनन खनन खन कँगना
लगन अगन के फेर
मनन रुठन संग साजना
चुहल साँझ सवेर
बाँटे तोहफ़े प्रीत के
दोनों प्रेम फ़कीर. घनन घनन घन........
…………………. © के.
एल. स्वामी ‘केशव’