ब्लौग सेतु....

30 अक्टूबर 2017

दर्द से फिर इस दिल को भर दो तुम


मुझको   फिर   से   बेकस  कर   दो  तुम।
दर्द  से  फिर  इस  दिल  को भर  दो  तुम।।

          कर    लो   नफरत    जिंतनी   करनी   है ।
          पर  लो   मुझको    मुरदा   कर   दो   तुम।।

मिल कर तुझसे किस्मत -ए- मुजरिम  हूँ ।
कुछ तो महफ़िल मे  अच्छा  कर  दो  तुम।।

          दिल   की    धड़कन   रुकने    लगती   है।
          इस   गुलशन   को   सहरा   कर  दो   तुम।।

मुझको    कहकर  अपना    इन   सब   से।
मुझको   फिर   से   अपना   कर  लो  तुम।।


               -- हिमांशु मित्रा 'रवि' --

26 अक्टूबर 2017

यादें


यादों का ये  कैसा जाना-अनजाना सफ़र है, 

भरी फूल-ओ-ख़ार से आरज़ू की रहगुज़र है। 


रहनुमा  हो जाता  कोई, 

मिल जाते हैं हम-सफ़र,

रौशनी बन  जाता  कोई,

हो  जाता   कोई   नज़र,

ऐसी लगन बेताबियों की,

हो जाता कोई दरबदर है।



याद   धूप   है  याद  ही  छाँव  है,

तड़प-ओ-ख़लिश का एक गाँव है, 

याद  रात   है  याद  ही   दिन  है,

न फ़लक़-ज़मीं पर होता  पाँव है,

हिय  में  हूक  होती  है  पल-पल,
  
बस  बेक़रारी में चश्म-ए-तर  है। 




सुध  न  तन  की  न  ही मन  की,
   
तसव्वुर में रहती  तस्वीर उनकी,
  
ठौर-ए-वस्ल ताजमहल लगता है,

आब-ए-चश्म गंगाजल लगता है,

बे-ख़ुदी में रहती किसे क्या ख़बर,

कब शब  हुई  कब आयी सहर  है। 




दौर-ए-ग़म   में  भाता  नहीं  मशवरा,

लगता ज्यों चाँदनी रात में हो बारिश,

आये हवा उनके दयार की तो लगता है,

छुपा  है  इसमें  संदेशा और सिफ़ारिश,

ज़माने   की  लाख  बंदिशों  को  तोड़ने,

  बार-बार  दिल  में उठती एक  लहर है।   

#रवीन्द्र सिंह यादव 

24 अक्टूबर 2017

हमरी ताउम्र की पतझर भइली.....डॉ .राकेश श्रीवास्तव

रउवा अइली तो जिन्दगी अइली ;
रउवा गइली तो जिन्दगी गइली .

ना पसीजी कसम ओ विनती से ;
रउवा काहे कठोर हो गइली .

प्रेम की ज्योति बुझइलू रउवा ;
आग हमरी घंघोर हो गइली .

रउवा कोंपल नई उगा लेबू ;
हमरी ताउम्र की पतझर भइली .

हमरी अंखिअंन में ख्वाब फिर न बसें ;
रउवा अंसुअंन का पहरा दे गइली .

दिल - लगी रउवा दिल्लगी समझी ;
दिल की दुर्गति हमार कर गइली .

रउवा खातिर जो मोहब्बत खेला ;
हमरा खातिर तो इबादत रहिली .

हम केहू से नहीं कहा दुखड़ा ;
ढल के ग़ज़लन में , शोर हो गइली .
गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ > रउवा = आप / तुम )

23 अक्टूबर 2017

ख़्यालों का सफ़र




अल्फ़ाज़ है कुछ माज़ी के 
दिल कभी भूलता ही नहीं
नये-पुराने घाव भर गए सारे  
दर्द-ओ-ग़म राह ढूँढ़ता ही नहीं। 



उम्र भर साथ चलने का वादा है 
अभी से लड़खड़ा गए हो क्यों ?
प्यास बुझती कहां है इश्क़ में 
साहिल पे आज आ गए हो क्यों ?



गर  न  हों  फ़ासले  दिल में   
तो दूरियों की परवाह किसे
नग़मा-ऐ-वफ़ा गुनगुनाती हो धड़कन
तो सानेहों की परवाह किसे। 



छूकर फूल को महसूस हुआ 
हाथ आपका जैसे छुआ हो 
रूह यों जगमग रौशन हुई
ज्यों रात से सबेरा हुआ हो। 

#रवीन्द्र सिंह यादव     

शब्दार्थ / WORD MEANINGS 
अल्फ़ाज़ = शब्द, शब्द समूह  ( लफ़्ज़ का बहुवचन ) / WORDS 

माज़ी = अतीत ,भूतकाल / PAST 

दर्द-ओ-ग़म= दर्द और ग़म / PAIN AND SORROW 

साहिल =समुद्री किनारा / SEA SHORE ,COAST  

फ़ासले = दूरी / DISTANCE 

सानेहों = त्रासदी (त्रासदियों ) / TRAGEDIES 

रूह= आत्मा / SOUL ,SPIRIT 

16 अक्टूबर 2017

ख़ाकी

समाज को सुरक्षा का एहसास, 

क़ानून की अनुपालना के लिए  

मुकम्मल मुस्तैद मॉनीटर, 

मज़लूमों की इंसाफ़ की गुहार ,

हों गिरफ़्त में मुजरिम-गुनाहगार ,

हादसों में हाज़िर सरकार , 

ख़ाकी को दिया ,

सम्मान और प्यार ,

अफ़सोस कि इस रंग पर ,

रिश्वत ,क्रूरता ,बर्बरता,अमानवीयता,ग़ैर-वाजिब हिंसा ,

विवेकाधिकार का दंभ ,भेदभाव का चश्मा, काला पैसा ,

सत्ता के आगे आत्मसमर्पण ,

पूँजी की चौखट पर तर्पण,

ग़रीब फ़रियादी को दुत्कार ,

आसमां से ऊँचा अहंकार , 

मूल्यों-सिद्धांतों को तिलांजलि !

 दे दी शपथ को  भी   श्रद्धांजलि !!

इतने दाग़-धब्बों के साथ,

ख़ाक में मिल गये  हैं, 

ख़ाकी को मिले अलंकरण ..!!!!!!

यक़ीनन हो समर्पित 

जो किये हैं धारण 

ख़ाकी रंग हूबहू

   उन्हें शत-शत नमन।  

#रवीन्द्र सिंह यादव 

10 अक्टूबर 2017

मां की उपमा केवल है, मां सचमुच भगवान है.

ये बताते हुए मन बहुत आहत है कि....
दिनांक 8 अकतुबर 2017 को....
हमारे इस कविता  मंच की रचनाकार  आदरणीय पमी बहन की पूजनीय माता जी का अक्समात निधन हो गया....
उन्हें मैं अश्रुपूरित श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ
एवं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
कि शोक संतप्त बहन पमी जी  व परिवार को
इस असीम दुःख को सहने की  क्षमता प्रदान करे


1. मां: जगदीश व्योम

मां कबीर की साखी जैसी,
तुलसी की चौपाई-सी,
मां मीरा की पदावली-सी,
मां है ललित रुबाई-सी.

मां वेदों की मूल चेतना,
मां गीता की वाणी-सी,
मां त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी,
लोकोक्तर कल्याणी-सी.

मां द्वारे की तुलसी जैसी,
मां बरगद की छाया-सी,
मां कविता की सहज वेदना,
महाकाव्य की काया-सी.

मां अषाढ़ की पहली वर्षा,
सावन की पुरवाई-सी,
मां बसन्त की सुरभि सरीखी,
बगिया की अमराई-सी.

मां यमुना की स्याम लहर-सी,
रेवा की गहराई-सी,
मां गंगा की निर्मल धारा,
गोमुख की ऊंचाई-सी.

मां ममता का मानसरोवर,
हिमगिरि-सा विश्वास है,
मां श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी,
कावा है कैलाश है.

मां धरती की हरी दूब-सी,
मां केशर की क्यारी है,
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर,
मां की छवि ही न्यारी है.

मां धरती के धैर्य सरीखी,
मां ममता की खान है,
मां की उपमा केवल है,
मां सचमुच भगवान है.

2. बेसन की सोंधी रोटी पर: निदा फाजली

बेसन की सोंधी रोटी पर,
खट्टी चटनी जैसी मां.

याद आती है चौका-बासन,
चिमटा फुकनी जैसी मां.

बांस की खुर्री खाट के ऊपर,
हर आहट पर कान धरे.

आधी सोई आधी जागी,
थकी दोपहरी जैसी मां.

चिड़ियों के चहकार में गूंजे,
राधा-मोहन अली-अली.

मुर्गे की आवाज से खुलती,
घर की कुंडी जैसी मां.

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन,
थोड़ी थोड़ी सी सब में.

दिन भर इक रस्सी के ऊपर,
चलती नटनी जैसी मां.

बांट के अपना चेहरा, माथा,
आंखें जाने कहां गई.

फटे पुराने इक अलबम में,
चंचल लड़की जैसी मां.


8 अक्टूबर 2017

करवा चौथ


कार्तिक-कृष्णपक्ष  चौथ का चाँद 
देखती हैं सुहागिनें 
आटा  छलनी  से....  
उर्ध्व-क्षैतिज तारों के जाल से 
दिखता चाँद 
सुनाता है दो दिलों का अंतर्नाद। 


सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प 
होता नहीं जिसका विकल्प 
एक ही अक्स समाया रहता 
आँख से ह्रदय तक 
जीवनसाथी को समर्पित 
निर्जला व्रत  चंद्रोदय तक। 


छलनी से छनकर आती चाँदनी में होती है 
सुरमयी   सौम्य सरस  अतीव  ऊर्जा 
शीतल एहसास से हिय हिलोरें लेता 
होता नज़रों के बीच जब छलनी-सा  पर्दा।  


बे-शक चाँद पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है
उबड़-खाबड़  सतह  पर  कैसा ईश अनुग्रह है ? 
वहां जीवन अनुपलब्ध  है 
न ही ऑक्सीजन उपलब्ध है 
ग्रेविटी  में छह गुना अंतर है 
दूरी 3,84,400 किलोमीटर है 
फिर भी चाँद हमारी संस्कृति की महकती ख़ुशबू है 
जो महकाती है जीवन पल-पल जीवनभर अनवरत......! 

#रवींद्र सिंह यादव 

6 अक्टूबर 2017

एक रोज।।





एक रोज छुपा दूंगा
सारे लफ्ज तुम्हारे
और तुम मेरी खामोशी
पर फिसल जाओगी!!
देखता हूँ कब तलक
छुपी रहोगी मुझसे
एक दिन अपनी ही
नज्म से पिघल जाओगी!!
और कितने चांद
मेरे लिए संभालोगी
मुझे यकीन है कि
तुम रातें बदल डालोगी
मैंने भी रख लिए हैं
कुछ चादं तुम्हारे
मेरे एक ही ख्वाब से
बेशक तुम जल जाओगी!!
अब दोनों होगें ही
तो नज्म नज्म खेलेंगे
वो गोल ना सही
दिल सा भी हो तो ले लेगें
मैने भी भर लिये
कुछ अल्फाज़ तुम्हारे
मेरी खामोशी से
यकीनन तुम बदल जाओगी!!


3 अक्टूबर 2017

अभावों के होते हैं ख़ूबसूरत स्वभाव

आज एक चित्र देखा मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े हुए वसन थामे अपना चेहरा छुपाये हुए है -


अभावों के होते हैं ख़ूबसूरत  स्वभाव, 
देखती हैं नज़रें भाई-बहन के लगाव। 

हो सुरक्षा का एहसास  तो भाई का दामन ,
ढूंढ़ोगे ममता याद आएगा माई का दामन। 

जीवन हमारा है बना  दुःखों  की चक्की, 
पिसते रहेंगे सब  चाहे हों लकी अनलकी। 

ज़माने से हम भी  हक़  हासिल करेंगे, 
आफ़त पे जीत बे-शक  हासिल करेंगे। 

है प्रभु का शुक्राना  आज सलामत हैं हम, 
किस लमहे की आख़िर ज़मानत हैं हम ?
#रवीन्द्र सिंह यादव