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21 सितंबर 2013

मेरे देश को आज क्या हो रहा है

-राजेश त्रिपाठी
मेरे देश को आज क्या हो रहा है।
हंसते हंसते यहां आदमी रो रहा है।।
न अमराइयों में पड़ें आज झूले।
पनघट भी गांवों के अब गीत भूले।।
न कजरी की तानें न बिरहा की बोली।
चले बात ही बात में आज गोली ।।
बारूदी गंधों में डूबी दिशाएं।
गांधी का सपना दफन हो रहा है।। (हंसते हंसते)
कोई मंदिरों के लिए है परेशां।
किसी को फकत मसजिदों की फिकर है।।
वहां सरहदों पर , बवंडर उठे हैं।
तनीं देश पर, दुश्मनों की नजर है।।
बगावत के ब्यूहों को, अब कौन तोड़े।
भारत का अभिमन्यु जब सो रहा है।।
बचपन से ये सीख है हमने पायी।
इंसानियत का , धरम है भलाई।।
लग रहा आज, ये पाठ उलटा पढ़ा है।
सूली पे हर सदी का मसीहा चढ़ा है।।
चाटुकारों की चांदी जहां कट रही।
सच्चा इंसा वहां हाशिया हो रहा है।। (हंसते हंसते)
सियासत के सरमायेदारों, करम हो।
बहुत हो चुका, अब कुछ तो शरम हो।।
इंसा को वोटों में, तुमने है ढाला।
मिल्लत की छाती पर, भोंका है भाला।।
छोटे कदम अब , बहकने लगे हैं।
संभालो इन्हें अब, गजब हो रहा है।। (हंसते हंसते)
हवाओं में बढ़ती तपिश कह रही है।
बगावत की आंधी यहां उठ रही है।।
न अब जहर घोलो, न नफरत बढ़ाओ।
मुल्क के रहनुमा, वक्त है चेत जाओ।।
दहशत ही दहशत , कदम दर कदम है।
हर दिशा से ये कैसा धुआं उठ रहा है।।
मेरे देश को आज क्या हो रहा है।
हंसते हंसते यहां आदमी रो रहा है।।

11 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना ह !!

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    1. भास्कर जी आपका आभार। इसी तरह बनाये रखिए अपना प्यार। देखिए न कितना बदल गया है इनसान। अब तो पैसे से बनती है किसी की पहचान। मानवता सिसकियां भर रो रही है। युवा पीढ़ी आदर्श सारे खो रही है। अगर यही है तरक्की की मिसाल।तो आने वाला वक्त करेगा और भी बेहाल।

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  2. भावपूर्ण और सुन्दर रचना |
    आशा

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    1. आशा जी आभार की रचना आप तक पहुंच पायी। इस तरह से मेरे लिखने में सार्थकता नजर आयी। दरअसल आशाएं सारी खो रही हैं। दानवता कर रही है हास्य मानवता रो रही है। हम सुनहरे अतीत को भूल सपनों में जी रहे हैं। यानी अमृत को छोड़ हलाहल पी रहे हैं।

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  3. सार्थक और भावपूर्ण,प्रभावी,रचना

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  4. !
    बहुत सुन्दर सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति !
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    1. आभार आपका भाई साहब प्रसाद। यह वक्त वह है जब सच्चे लोग झेल रहे अवसाद। जो चालाक हैं सच्चों को हाशिए पर रख रहे हैं। चाटकारिता और छल छद्म से अपनी प्रगति का इतिहास लिख रहे हैं। ये हालात संचमुच संगीन हैं। पर इनमें ही बहुतों की जिंदगी रंगीन है।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    हमारी रचनाएँ तो उच्चारम पर लगी ही हैं। आप अपनी सुविधानुसार इन्हें मेरे नाम के साथ प्रकाशित कर सकते हैं।

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  6. दर्शन जी मेरं भावों को पसंद करने के लिए बहुत-बहुत आभार। कितना बदल गया है संसार। मेरी कविता का भी है यही आधार। भारत कर रहा है आर्तनाद। गांधी के आदर्श अब किसे रहे याद। हम बस अपनी बरबादी देख रो रहे हैं.। कहते हैं प्रगति पथ पर हैं पर मानवता खो रहे हैं।

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