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14 नवंबर 2013

कविता

  उसने सोचा





राजेश त्रिपाठी

उसने सोचा

चलो खेलते हैं

एक अनोखा खेल

खेल राजा-प्रजा का

खेल ईनाम-सजा का।

वैसा ही

जैसे खेलते हैं बच्चे।

उसने सुना था

चाणक्य ने

राजा का खेल खेलते देख

किसी बच्चे को

बना दिया था चंद्रगुप्त मौर्य

दूर-दूर तक फैला था

जिसका शौर्य

उसने बनाया एक दल

कुछ हां-हुजूरों का

मिल गया बल

उनसे कहा,

आओ राजनीति-राजनीति खेले

सब हो गये राजी

बिछ गयीं राजनीति की बिसातें

राज करने को चाहिए था

एक देश

शायद वह भारत था

चाहें तो फिर कह सकते हैं इंडिया

या फिर हिंदुस्तान

यहीं परवान चढ़े

उस व्यक्ति के अरमान

राजनीति की सीढ़ी दर सीढ़ी

चढ़ता रहा

यानी अपनी एक नयी दुनिया गढ़ता रहा।

दुनिया जहां है फरेब,

जिसने ऊपर चढ़ने को दिया कंधा

उसे धकिया ऊपर चढ़ने का

यानी शातिर नेता बने रहने की राह में

कदम दर कदम चढ़ने का।

आज वह ‘राजा’ है

हर ओर बज रहा डंका है।

अब वह आदमी को नहीं

पैसे को पहचानता है,

जिनकी मदद से आगे बढ़ा

उन्हें तो कतई नहीं जानता,

इस मुकाम पर पहुंच

वह बहुत खुश है

राजनीति का खेल

बुरा तो नहीं,

उसने सोचा।

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई । सस्नेह

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    1. संजय भाई आभार। कुछ ऐसा ही तो चल रहा है आजकल राजनीति का व्यापार। सब जनता के साथ खेल रहे हैं राजनीति का खेल। जनता रही है अनीति, अनाचार का दुखद दंश झेल। चाहे जैेसे हो ये सूरत बदलनी चाहिए। अब नेताओं की नहीं जनता की चलनी चाहिए।

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  2. अपने चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार। बस ऐसे ही बनाये रखिए अपना प्यार।

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  3. उपासना जी अच्छी लगी आपकी सराहना। ऐसे ही वचन हमें देते हैं प्रेरणा। ऐसे ही देते रहिए सुझाव। ताकि हमें भी हो और बेहतर लिखने का चाव।

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  4. उत्तर
    1. वाणभट्ट जी आपका आभार। माना कि यही है आज की नीति। लेकिन हमने नहीं देखी पहले ऐसी अनीति। यही रहा हाल तो देश का होगा और बुरा हाल। बस इसी बात का तो है हमें मलाल।

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  5. उत्तर
    1. ओकार जी आभार। यों ही बना रहे आपका प्यार। यह देता है नया कुछ लिखने का बल। बहुत ही अच्छा है आपका यह प्यार निर्मल निश्छल।

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  6. उत्तर
    1. नीरज जी प्रशंसा का लिए आभार। यों ही बनाये रखिएगा प्यार।

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  7. उत्तर
    1. आशा जी आभार और धन्यवाद कि अच्छे लगे आपको मेरे भाव। ऐसे ही देते रहिएगा अपने बहुमूल्य सुझाव

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  8. उत्तर
    1. सुषमा जी आभार। यों ही सुझावों से देते रहिएगा संबल। ताकि हमें मिलता रहे कुछ और अच्छा लिखने का बल

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  9. राजनीति का खेल बुरा नहीं
    लोगों को बनाता हैं कपटी -रचना बहुत सुन्दर है !
    नई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
    नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ

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    1. प्रसाद जी यह तो है आपका प्यार की आपने हमें सराहा। ज्यादा कुछ नहीं हमने तो आज के हालात ही कहना चाहा। अगर यही देश का हाल रहेगा। तो भला कौन इसे फिर महान कहेगा

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