@फोटो : गूगल से साभार
उस खाली पड़े कैनवास पर
हर रोज सोचता हूँ
एक तस्वीर उकेरूँ
कुछ ऐसे रंग भरूँ
जो अद्वितीय हो
पर कौन सी तस्वीर बनाऊँ
जो हो अलग सबसे हटकर
अद्वितीय और अनोखी
इसी सोच में बस गुम हो जाता हूँ
ब्रश और रंग लिए हाथों में
पर उस तस्वीर की तस्वीर
नहीं उतरती मेरे मन में
जो उतार सकूँ कैनवास पर
वह रिक्त पड़ा कैनवास
बस ताकता रहता है मुझे हर वक्त
एक खामोश प्रश्न लिए
और मैं
मैं ढूँढने लगता हूँ जवाब
पर जवाब ...
जवाब अभी तक मिला नहीं
तस्वीर अभी तक उतरी नहीं
मेरे मन में
और वह खाली पड़ा कैनवास
आज भी देख रहा है मुझे
अपनी सूनी आँखों में खामोशी लिए !!
लेखक परिचय - शिवनाथ कुमार
वाह ... अनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता1
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंWaah..bahut khoob
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए :)
जवाब देंहटाएंआभार !
वास्तव में ही आप का लेखन उच्च कोटी का है...
जवाब देंहटाएं