@फोटो : गूगल से साभार
अब अच्छा लगता है
देखना जिंदगी को
पीछे मुडकर।
जब पहुंच गया है
मंजिल के पास
अपना ये सफर।
क्या पाया हमने
क्या खोया
सोचे क्यूं कर।
अच्छे से ही
कट गये सब
शामो सहर।
सुख में हंस दिये
दुख में रो लिये
इन्सां बन कर।
कुछ दिया किसी को
कुछ लिया
हिसाब बराबर....!!!
लेखक परिचय -- स्वप्नरंजिता ब्लॉग से आशा जोगळेकर
बहुत सुन्दर 1
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , पीछे मुड अपने क़दमों के निशां देख लगता है, चलन हैअभी और चलना है , अभी तो सफर और बाकी है, तब तक , जब तक कि थक न जाऊं ,मेरे पीछे भी तो बहुत लोग उन क़दमों पर चल रहें हैं , तो कुछ उनसे बच रहें हैं
जवाब देंहटाएंउत्तम कृति आशा जी , आपका आभार