शब्दों के रिश्ते हैं
शब्दों से
कोई चलता है उँगली पकड़कर
साथ - साथ
कोई मुँह पे उँगली रख देता है
कोई चंचल है इतना
झट से जुबां पर आ जाता है
कोई मन ही मन कुलबुलाता है
किसी शब्द को देखो कैसे खिलखिलाता है
....
दर्द के साये में शब्दों को
आंसू बहाते देखा है
शब्दों की नमी
इनकी कमी
गुमसुम भी शब्दों की दुनिया होती है
कुछ अटके हैं ... कुछ राह भटके हैं
कितने भावो को समेटे ये
मेरे मन के आंगन में
अपना अस्तित्व तलाशते
सिसकते भी हैं
....
जब भी मैं उदासियों से बात करती हूँ,
जाने कितनी खुशियों को
हताश करती हूँ
नन्हीं सी खुशी जब मारती है किलकारी,
मन झूम जाता है उसके इस
चहकते भाव पर
फिर मैं शब्दों की उँगली थाम
चलती हूँ हर हताश पल को
एक नई दिशा देने
कुछ शब्द साहस की पगडंडियों पर
दौड़ते हैं मेरे साथ-साथ
कुछ मुझसे बातें करते हैं
कुछ शिकायत करते हैं उदास मन की
कुछ गिला करते हैं औरों के बुरे बर्ताव का
मैं सबको बस धैर्य की गली में भेज
मन का दरवाजा बंद कर देती हूँ.....!!
लेखक परिचय -- सदा जी
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