आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !
सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !
हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !
हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !
हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
धन्यवाद संजय ! मेरी रचना का आपने कवितामंच के लिये चयन किया ! हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना.... ?" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंहर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |
हर एक शेर लाजवाब है ! भाव की स्पष्ट अभिव्यक्ति है !
जवाब देंहटाएंरहने दो मुझे समाधि में !
Behad umda lekhan va rachna ...zabardast !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहम भी हैं सुकूं से जमीं पर खाक की तरह---वाह!!
जवाब देंहटाएंवाह ... लाजवाब शेरोन से सजी ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंअब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जवाब देंहटाएंजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
...........Zabardast Likha hai Aap Ne Sadhna ji
Very Nice post..
जवाब देंहटाएंWish you a very happy diwali & welcome to
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sundar panktiyaan!
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