ब्लौग सेतु....

18 अक्तूबर 2014

आये थे तेरे शहर में -- साधना वैद


आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !

सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !

हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !

हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !

हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !

अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !

तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !



13 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  2. धन्यवाद संजय ! मेरी रचना का आपने कवितामंच के लिये चयन किया ! हृदय से आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना.... ?" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
    भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |

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  5. हम भी हैं सुकूं से जमीं पर खाक की तरह---वाह!!

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  6. अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
    जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !

    ...........Zabardast Likha hai Aap Ne Sadhna ji

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