ब्लौग सेतु....

29 अक्तूबर 2014

गजल


गर आप फरमाइश करें
-राजेश त्रिपाठी
हमने आज जलाये हैं, हौसलों के चिराग।
हवाओं से कहो, वे जोर आजमाइश करें।।

हम तो रियाया हैं, हमारी क्या बसर।
आप आका हैं, जो सात को सत्ताइश करें।।

झुनझुने की तरह , हम आगे-पीछे बजते रहे।
सजदे में झुक जायेंगे, गर आप फरमाइश करें।।

मुसलसल आपकी जफाओं ने, मारा है हमें।
कितने आंसू अब तक बहे, आप पैमाइश करें।।

हाथों को काम मुंह को निवाला मिलता रहे।
खुदारा आप बस इतनी तो गुंजाइश  करें।।

भूखे पेट जी रही है, देश की आधी अवाम।
और आप हैं कि शानो शौकत की नुमाइश करें।।

देश का अमनो अमान हो गया है काफूर।
आग है लगी हुई, आप वो करें जो तमाशाई करें।।



8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ....बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति त्रिपाठी जी

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  3. हमने आज जलाये हैं, हौसलों के चिराग।
    हवाओं से कहो, वे जोर आजमाइश करें।।

    वाह ! जोश भरी पंक्तियाँ..

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  4. sundar rachana

    yaha bhi padhare.

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/

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  5. एक जिसके शब्द दिल और यथार्थ की पृष्ठ भूमि को छूते हैं
    , वहीं ग़ज़ल हैं , और वो यहीं ग़ज़ल हैं।
    http://savanxxx.blogspot.in

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  6. अजन्मी बेटी की चीत्कार
    जिन्दगी ने जिन्दगी से दामन छुड़ाया ,
    माँ की ममता पर , कलंक था लगाया /
    मैंभी इक बेटी थी ,
    तू भी इक बेटी थी माँ
    फिर तू क्यूं न समझपाई
    क्यूं देती रही मेरे न आने की दुहाई/
    माँ थी तू ,कोख ममता मयी तेरी
    पर तेरी हवानियत बनी कातिल मेरी /
    चीखती रहीं , रोती रही,
    तेरी कोख में , मैं खुद को खोती रही/
    न सुनना था तूझको , न तूने सुना
    उठता रहा मेरी मोत का
    तेरी कोख से धुआं /
    ओ माँ ! क्या तू इतनी लाचार थी ?
    मेरे आने से क्यूं बेजार थी/
    क्या इतनी बुरी थी तक़दीर मेरी
    की बन ना पाई मैं तस्वीर तेरी/

    सोच माँ जब तू माँ की कोख में आई थी,
    तू भी तो बेटी का ही
    एक अंश पाई थी/
    सोच ना माँ तुझपे भी
    ये ख़जरं चला होता
    तो क्या मेरा ये अजन्मा वजूद
    तेरी कोख में यूँ रोता/
    मत कहना कि, तेरे पाँव में
    रिश्ताे की बेडिया थी/
    पर जिस धागे मै तुझसे जुडी वो डोर भी क्या कम थी/
    जब तूने मुझ पर,
    मौत का खंजर चलाया,
    काँप उठी रूह मेरी
    और लहू बनकर बह गया
    मेरा वजूद सारा/
    उसी मिटते वजूद से मेरे
    तेरी काोख के घरोंदे में
    आज भी बिलखती है रूह मेरी
    और पूछती है ये सवाल
    कौन कहता है कौन कहता है?
    माँ के चरणों में जन्नत होती है माँ
    तूने जो किया वो जन्नत में,होता है क्या?
    वो जन्नत में होता है क्या ?


    नीरज राणा (कुरूक्षेत्र)

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    उत्तर
    1. आदरणीय आप द्वारा टिप्पणी में अपनी रचनाएं दर्ज की जा रही है, जो हर्ष की बात है। अगर यही कविताएं पोस्ट में दर्ज की जाती तो अधिक पाठक इसे पढ़ सकते थे। इस लिये आप मुझे संपर्क फाम या मेरी ईमेल kuldeepsingpinku@gmail.com द्वारा अपनी ईमेल से अवगत करें। मैं आप को इस मंच के रचनाकार के रूप में आमंत्रित कर दूंगा। जिससे आप इस मंच पर अपनी रचनाएं दर्ज कर सकेंगे।
      सादर।

      हटाएं

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