सननन सननन पवन बहे,
घनन घनन घन गर्जन करे ।
हुलस-हुलस कर नाचे मनवा,
महके उपवन सुमन झरे ॥
बहकी कलियां महके फूल,
भंवरे के मन उठता शूल ॥
तितली रानी रंग भरे,
स्वर्णमयी लगती है धूल ॥
कोकिल केकी करें धमाल,
मस्तानी हिरणों की चाल ।
उड़ते पांखी गाएं गीत,
सूरज सब पर मले गुलाल ॥
झूमें लहरें हरियल खेत,
सोना बनकर निखरी रेत ।
रंग लाई मेहनत अब देखो,
धरती ने उमड़ाया हेत ॥
आज खुशी क्या ठिकाना
गाती है कुदरत खुद गाना ।
करवट ली किस्मत ने मेरी,
उपजी हैं फसलें भी नाना ॥
चारों और आशा ही आशा,
दूर कहीं भागी निराशा ।
मचला जाए मनवा मेरा,
मौसम भी बहका जरा सा ॥
- केशरीलाल स्वामी ‘केशव’
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद महोदय.
हटाएंबहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद कविता जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार लें, प्यार लें, सत्कार लें !
हटाएंमुहब्बत वाले दिल का मुहब्बत भरा उपहार लें !!