गज़ल ( सेक्युलर कम्युनल )
जब से बेटे जबान हो गए
मुश्किल में क्यों प्राण हो गए
किस्से सुन सुन के संतों के
भगवन भी हैरान हो गए
आ धमके कुछ ख़ास बिदेशी
घर बाले मेहमान हो गए
सेक्युलर कम्युनल के चक्कर में
गाँव गली शमसान हो गए
कैसा दौर चला है अब ये
सदन कुश्ती के मैदान हो गए
बिन माँगें सब राय दे दिए
कितनों के अहसान हो गए
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-09-2015) को "हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने से परहेज क्यों?" (चर्चा अंक-2096) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ......... सुन्दर पंक्तियाँ हैं
जवाब देंहटाएंवाह कमाल के शेर ... अच्छी ग़ज़ल ...
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