ब्लौग सेतु....

22 अक्तूबर 2015

शरद पूर्णिमा पर विशेष...स्मृति आदित्य

















शरद की 
बादामी रात में 
नितांत अकेली 
मैं 
चांद देखा करती हूं 
तुम्हारी 
जरूरत कहां रह जाती है, 

चांद जो होता है 
मेरे पास 
'तुम-सा' 
पर मेरे साथ 
मुझे देखता 
मुझे सुनता 
मेरा चांद
तुम्हारी 
जरूरत कहां रह जाती है। 

ढूंढा करती हूं मैं 
सितारों को 
लेकिन 
मद्धिम रूप में उनकी 
बिसात कहां रह जाती है, 

कुछ-कुछ वैसे ही 
जैसे 
चांद हो जब 
साथ मेरे 
तो तुम्हारी 
जरूरत कहां रह जाती है।
-स्मृति आदित्य
फीचर एडीटर..वेब दुनिया


10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी कविता-मंच पर आप का स्वागत है।
    आप को यहां देखकर अति हर्ष हुआ.....

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. विजयादशमी पर शुभकामनाऐं । सुंदर प्रस्तुति ।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 09 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. सुंदर भावों का प्रस्फुटन।

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  6. बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

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  7. ढूंढा करती हूं मैं
    सितारों को
    लेकिन
    मद्धिम रूप में उनकी
    बिसात कहां रह जाती है,
    अतिसुन्दर! आभार। "एकलव्य"

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  8. मन को जब आधार मिल जाए,
    सासों को मिल जाए प्राण
    तब
    तुम्हारी जरूरत कहां रह जाती है.....

    आपकी रचना मन को छू गई....स्मृति जी।

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