उनकी पुण्यतिथि पर विशेष
25 अक्टूबर,1980
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए
ज़मीं सख़्त है आसमाँ दूर है
बसर हो सके तो बसर कीजिए
सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल
ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए
वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर
वही जुर्म बार-ए-दिगर कीजिए
क़फ़स तोड़ना बाद की बात है
अभी ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए
-साहिर लुधियानवी
1921-1980
मुश्तहरः घोषणा, रद्द-ए-अमलः प्रतिक्रिया,
बार-ए-दिगरः दूसरे का भार, क़फ़सः पिंजरा,
ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-परः पंख आने का इन्तजार
साहिर जी की सुंदर गजल....
जवाब देंहटाएंमैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
जवाब देंहटाएंमिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए
.....सुंदर गजल .साहिर जी की पढ़वाने के लिए आभार !