आखिर क्यों होते हैं युद्ध?
क्यों बोये जाते हैं बम ।
क्यों लहलहाती है उसमें ,
आतंक की फसल ।
बीच चौराहो पर जब ,
फूटते हैं बम ।
छितरा जाती हैं चारों ओर,
लाशें ही लाशें ।
हर ओर चीख पुकार ,
मातम ही मातम ।
फैल जाता है सडकों पर ,
बस खून ही खून ।
पा जाते हैं चंद जमीनें ,
मनाते हैं जीत का जश्न ।
लेकिन सोचा है कभी ,
क्या होगा इस युद्ध का अंत ।
दमघोटू बम के धुएँ में ,
क्या जी पाएंगे हम ।
खून से भरा नदिया का जल ,
क्या पी पाएंगे हम ।
-श्रीमती राजेश्वरी जोशी
उत्तराखण्ड भारत
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-05-2016) को "कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी" (चर्चा अंक-2341) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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