राजेश त्रिपाठी
मुश्किलें हैं और जाने कितने अजाब हैं।
जिंदगी की बस इतनी कहानी हो गयी।।
अधूरे रह गये जाने कितने ख्वाब हैं।
मुश्किलों के हवाले जिंदगानी हो गयी।।
लाखों करोड़ों में अब बिकते हैं दूल्हे ।
पावन परिणय की रवायत खो गयी ।।
दर्द कौन पढ़ सकता है उस शख्स का।
हाथ खाली हैं, बिटिया सयानी हो गयी।।
सियासत की चालों का है ऐसा असर।
हर गली कुरुक्षेत्र की कहानी हो गयी।।
नफरतों के गर्त में है अब जिंदगी ।
अमन तो अब बीती कहानी हो गयी।।
तरक्की का ढोल तो सब पीट रहे हैं ।
पर बद से बदतर जिंदगानी हो गयी।।
बढ़ रहे हैं अब दिलों के बीच फासले।
एकजहती तो अब बेमानी हो गयी।।
दिल में नफरत, हाथ में खंजर जहां।
अमन की बात इक कहानी हो गयी।।
अजाब=दुख, दर्द, पीड़ा
अमन की बात इक कहानी हो गयी
जवाब देंहटाएंवाह...
सादर
मेरे भावों के समर्थन के लिए धन्यवाद यशोदा जी।
हटाएंबढ़ रहे हैं अब दिलों के बीच फासले।
जवाब देंहटाएंएकजहती तो अब बेमानी हो गयी।।
दिल में नफरत, हाथ में खंजर जहां।
अमन की बात इक कहानी हो गयी।।
बहुत सुन्दर सामयिक गजल ..
मेरे भावों के समर्थन के लिए धन्यवाद यशोदा जी।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी।
हटाएंNice..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पम्मी जी।
हटाएंNice Lines
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल ..
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