घड़ा पाप का भर रहा [लम्बी तेवरी, तेवर-शतक
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+रमेशराज
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मन की खुशियाँ जागकर मीड़ रही हैं आँख
चीर रही जो
अंधकार को उसी किरन की मौत न हो। 1
चाहे जो भी नाम दे इस रिश्ते को यार
जिस कारण भी प्रीति जगे उस सम्बोधन की मौत न हो। 2
बड़ा हो गया आज ये दौने-पत्तल
चाट
जूठन के बलबूते आये इस यौवन की मौत न हो। 3
यह डूबी तो टूटनी एक सत्य की साँस
माँग रहे सब लोग दुआएँ इस धड़कन की मौत न हो। 4
पूजा घर में हो रही सिक्कों की बौछार
प्रभु से मिन्नत करे पुजारी ‘खनन-खनन’
की मौत न हो। 5
तेरे भीतर आग है, लड़ने
के संकेत
बन्धु किसी पापी के सम्मुख तीखेपन की मौत न हो। 6
जन-जन
की पीड़ा हरे जो दे धवल प्रकाश
जो लाता सबको खुशहाली उस चिन्तन की मौत हो। 7
मन के भीतर दौड़ती बनकर एक तरंग
दुःख के बाद शाद करती जो उस थिरकन की मौत न हो। 8
घर के भीतर बढ़ रही अब दहेज की रार
हुए अभी कर जिसके पीले उस दुल्हन की मौत न हो। 9
कायर ने कुछ सोचकर ली है भूल सुधार
डर पर पड़ते भारी अब इस संशोधन की मौत न हो। 10
चूम-चूम
जिस पूत को बड़ा कर रही मात
बेटा जब सामर्थ्यवान हो,
इस चुम्बन की मौत न हो। 11
‘परिवर्तन'
का अस्त्र ले जो उतरा मैदान
करो दुआएँ आग सरीखे जैसे रघुनन्दन की मौत न हो। 12
देश लूटने एकजुट तस्कर-चोर-डकैत
सोच रहा राजा अब ऐसे गठबन्धन की मौत न हो। 13
घड़ा पाप का भर रहा, फूटेगा
हर हाल
ऐसा कैसे हो सकता है खल-शासन की मौत न हो। 14
सब कुछ अपने आप फिर हो जायेगा ठीक
तू कर केवल इतनी चिन्ता समरसपन की मौत हो।
एक दूसरे से गले रोज मिलें सद्भाव
जो दिल से दिल जोड़ रहा ऐसे प्रचलन की मौत न हो। 15
तेरे आगे मैं झुकूँ, तू दे कुछ आशीष
तुझ में श्रद्धा रखता हूँ मैं,
बन्धु नमन की मौत न हो। 16
बेटों को समझा रहे हाथ जोड़ माँ-बाप
बँटवारे के बीच खड़ा जो उस आँगन की मौत न हो। 17
वादे से मुकरे नहीं, लाये
सुखद वसंत
जो नेता संसद पहुँचा है,
कहो ‘वचन’
की मौत न हो। 18
चलो बन्धु हम ही करें घावों का उपचार
गारण्टी सत्ता कब देती चैन-अमन
की मौत न हो। 19
ये बाघों का देश है, जन-जन
मृग का रूप
अब तो चौकस रहना सीखो,
किसी हिरन की मौत न हो। 20
शंका का तम घेरता सुमति-समझ
को आज
पति-पत्नी
के बीच प्रेम में आलिंगन की मौत न हो। 21
‘सूरदास’
को मिल गया डिस्को क्लब-अनुबंध
अब डर है कुछ भक्ति-पदों
की और भजन की मौत न हो। 22
उभर रहे हैं आजकल सूखा के संकेत
कली-कली
के भीतर आयी नव चटकन की मौत न हो। 23
अब है खल के सामने दोनों मुट्ठी तान
बार-बार
ललकार रहा जो उस ‘झम्मन’
की मौत न हो। 24
लिये कुल्हाड़ी साथ वे सत्ता जिनके हाथ
राजनीति के दावपेंच में चन्दन-वन
की मौत न हो। 25
सुलझेंगी सब गुत्थियाँ इसके बूते यार
इसको जीवित रहना प्यारे इस उलझन की मौत न हो। 26
फूटेगी कुछ रौशनी अंधकार के बीच
शर्त यही नव तेवर वाले नव चिन्तन की मौत न हो। 27
आलिंगन के जोश को कह मत तू आक्रोश
ग़ज़लें लिख पर ‘कथ्य’,
‘काफिया’ और
‘वज़न’
की मौत न हो।28
नया जाँच आयोग भी जाँच करेगा खाक !
ये भी बस देगा गारण्टी ‘कालेधन
की मौत न हो’। 29
जो भेजा है कोर्ट ने खल को पहली बार
जन-दवाब
में रपट लिखी थी, इस सम्मन
की मौत न हो। 30
जनता के हित भर रही जिनके मन में आग
जब संसद के सम्मुख बैठें तो अनशन की मौत न हो। 31
उठी लीबिया, सीरिया
अब भारत के बीच
पकड़े यूँ ही जोर आग ये,
आन्दोलन की मौत न हो। 32
शब्द-शब्द
से और कर व्यंग्यों की बौछार
यही कामना तेवरियों में अभिव्यंजन की मौत न हो। 33
भावों की रस्सी बना उससे खल को बाँध
तेरे भीतर के वैचारिक अब वलयन की मौत न हो। 34
पंछी पिंजरा तोड़कर फिर भर रहा उड़ान
पुनः सलाखों बीच न आये और गगन की मौत न हो। 35
गोकुल में भी बढ़ रहे चोर-मिलावटखोर
वृन्दावन के मिसरी-माखन,
मधुगुंजन की मौत न हो। 36
हाथ उठा सबने किया अत्याचार-विरोध
लड़ने के संकल्प न टूटें,
अनुमोदन की मौत न हो। 37
जनता में आक्रोश लखि सत्ता कुछ भयभीत
पहली बार दिखायी देते परिवर्तन की मौत न हो। 38
परिवारीजन एक हो पूजें यह त्योहार
घर में दो-दो
गोधन रखकर गोबरधन की मौत न हो। 39
संसद तक भेजो उसे जो जाने जन-पीर
नेता के लालच के चलते और वतन की मौत न हो। 40
केवल इतना जान ले-‘प्यार
नहीं व्यापार’
जुड़ा हुआ सम्बन्ध न टूटे,
अपनेपन की मौत न हो। 41
लिखा हुआ है ‘हिम’
जहाँ अब लिख दे तू ‘आग’
इसको लेकर चौकस रहना संशोधन की मौत न हो। 42
जिस में जन कल्याण का सुमन सरीखा भाव
चाहे जो हो जाए लेकिन उसी कथन की मौत न हो। 43
पूँजीपति के हित यहाँ साध रही सरकार
करें आत्महत्या किसान नहिं औ’
निरधन की मौत न हो। 44
राजा चाहे तो प्रजा पा सकती है न्याय
बादल बरसें नहीं असम्भव बढ़ी तपन की मौत न हो। 45
सोच-समझ
कर क्रोध में कर लेना तलवार
सुखमोचन के बदले प्यारे दुःखमोचन की मौत न हो। 46
बातें लिख शृंगार की लेकिन रह शालीन
केवल धन के ही चक्कर में सद्लेखन की मौत न हो। 47
खूब हँसा हर मंच से नव चुटकुले सुनाय
पर दे गारण्टी आफत के आगे जन की मौत न हो। 48
तूने मेरी शर्ट पर जो टाँका भर प्यार
तेरे ही हाथों कल सजनी उसी बटन की मौत न हो। 49
अब भारी खिलवाड़ है शब्द-शब्द
के साथ
हिन्दी वालों के हाथों ही हिन्दीपान की मौत न हो। 50
कुछ तो हो सुख की नदी तरल तरंगित शाद
जो लेकर बूदें आया हो ऐसे ‘घन’
की मौत न हो। 51
असुर न केवल साथ हैं इसके सँग अब देख
अति बलशाली रावण सम्मुख राम-लखन
की मौत न हो। 52
महँगाई डायन डसे, कहीं
मारती भूख
कुछ तो सोचें सत्ताधरी यूँ जन-जन
की मौत न हो। 53
हरियाली के दृश्य हों पल्लव और प्रसून
जिसके आते कोयल कूके उस सावन की मौत न हो। 54
देखो दिव्य उदारता, इसका
छीना प्यार
पत्नी फिर भी सोच रही है ‘प्रभु
सौतन की मौत न हो।’ 55
याद रखो तुम ‘लक्ष्मी’,
‘तात्या’ का
बलिदान
नयी सभ्यता के अब आगे ‘सत्तावन’
की मौत न हो। 56
मंजर बदले चीख में, फैले
हाहाकार
किसी रात के डेढ़ बजे होते अनशन की मौत न हो। 57
नवपूरव की सभ्यता, पश्चिम
के रँग देख
टाई पेंट सूट के आगे यूँ अचकन का मौत न हो। 58
निर्धन का धन सड़ गया गोदामों के बीच
यूँ सरकारी गोदामों में फिर राशन की मौत न हो। 59
प्रसव-समय
पर नर्स ने किया नहीं उपचार
कोख-बीच
यूँ ही भइया रे फिर किलकन की मौत न हो। 60
खल के सम्मुख हो खड़ा अरे इसे धिक्कार
हाथ जोड़कर पाँव मोड़कर यूँ घुटअन की मौत न हो। 61
पा लेंगे निश्चिन्त हो,
भले लक्ष्य हैं दूर
सद्भावों के नेह-प्यार
के बस इंजन की मौत न हो। 62
सच को सच ही बोलना बनकर न्यायाधीश
हीरा को हीरा ही कहना,
मूल्यांकन की मौत न हो। 63
कल को प्यारे देखना मिटें सकल संताप
जहाँ तक्षकों की आहुतियाँ वहाँ हवन की मौत न हो। 64
इन्हें न आये रौंदने कोई बर्बर जाति
जहाँ कर रहे फूल सभाएँ,
सम्मेलन की मौत न हो। 65
हाँ में हाँ मिलना रुके,
झुके न सर इस बार
बन्धु किसी पापी के आगे ‘न’
‘न’ ‘न’
की मौत न हो। 66
छन्द और उपमान को सच का बना प्रतीक
मूल्यहीन रति के चक्कर में काव्यायन की मौत न हो। 67
बना गये हैं पुल कई मिल घोटालेबाज
उद्घाटन के समय यही डर ‘उद्घाटन
की मौत न हो’। 68
अब केवल ‘ओनर
किलिंग’ दिखती चारों ओर
प्रेमी और प्रेमिका के पावन बन्धन की मौत न हो। 69
चीरहरण जिसने किया लूटी द्रौपदि लाज
ऐसा क्यों तू सोच रहा है दुर्योधन की मौत न हो। 70
सिस्टम लखि बेचैन है तू भी मेरी भाँति
तेरे भीतर घुमड़ रहा जो उस मंथन की मौत न हो। 71
रावण मिलने हैं कई जिनका होना अंत
रोक न टोक न रघुनंदन को राम-गमन
की मौत न हो। 72
दुश्मन से लड़ हो फतह यही बहिन की सोच
लगे न कहीं पीठ पर गोली यूँ वीरन की मौत न हो। 73
अश्व सरीखा हिनाहिना मत देना तू बन्धु
खल के सम्मुख सिंह सरीखे सुन गर्जन की मौत न हो। 74
भय से बाहर तू निकल कान्हा बनकर देख
यह कैसे मुमकिन है प्यारे फैले फन की मौत न हो। 75
मंत्रीजी का फोन सुन श्रीमानों में द्वन्द्व
चयनकमेटी के द्वारा अब सही चयन की मौत न हो। 76
युद्ध और जारी रहे इस सिस्टम के साथ
असंतोष-आक्रोश
भरे इस शब्द-वमन की मौत
न हो। 77
तू जग का कल्याण कर, तू
है शिव का रूप
तूने खोला उसी ‘तीसरे’
आज ‘नयन’
की मौत न हो। 78
जो है सच की राह पर उसका देंगे साथ
चूक न हो जाये अब साथी दुःख-भंजन
की मौत न हो। 79
जिससे यौगिक टूटकर बन जाना है तत्त्व
लेकर जो आवेश चला है उस आयन की मौत न हो। 80
पृष्ठ-पृष्ठ
घोषित हुआ जिस में धर्म अफीम
उस किताब को पूरी पढ़ना,
सत् अध्ययन की मौत न हो। 81
जिसमें दबकर मर गये कई जगह मजदूर
ऐसे बनते फिर बहुमंजिल किसी भवन की मौत न हो। 82
दास-प्रथा
की तोड़ने जो आया जज़ीर
फिर भारी षड्यंत्र हो रहे,
फिर लिंकन की मौत न हो। 83
फिक्सिंग का ये दौर है,
बस पैसे का खेल
सट्टेबाजी के चक्कर में ‘मैराथन’
की मौत न हो। 84
मति के मारो रहबरो, अरे
दलालो और
महँगाई डायन के मुँह में पिस जन-जन
की मौत न हो। 85
नेता के सुत ने किया अबला के सँग ‘रेप’
रपट लिखाने के चक्कर में अब ‘फूलन’
की मौत न हो। 86
जैसे हो जि़न्दा रखो मर्यादा का ओज
आचरणों की कामवृत्तिमय नव फिसलन की मौत न हो। 87
जो रिश्तों के बीच में रहे खाइयाँ खोद
और उन्हीं को भारी चिन्ता ‘अपनेपन
की मौत न हो’। 88
यही समय का खेल है सदा न रहती रात
कालचक्र के बीच असंभव कटु गर्जन की मौत न हो। 89
संशय से बाहर निकल दिखे नूर ही नूर
चाहे क्यों केवल यह प्यारे तंगज़हन की मौत न हो। 90
प्रतिभाओं के सामने नकल न जाए जीत
कुंठा पाले ज्ञान नहीं यारो ‘एवन’
की मौत न हो। 91
तू मनमोहन है अगर मंत्री-पद
के साथ
कूड़े से खाना बटोरते सुन बचपन की मौत न हो। 92
भरी क्लास में कर रहा दादागीरी झूठ
इस कक्षा का 'सच'
है टीचर, अध्यापन
की मौत न हो।92
चोट आस्था पर पड़े, सहता
धर्म कलंक
पावन-स्थल
ईश्वर के घर सुन्दर ‘नन’
की मौत न हो। 93
झांसी की रानी लिए जब निकली तलवार
कुछ पिट्ठू तब सोच रहे थे ‘प्रभु
लंदन की मौत न हो’। 94
सिर्फ ‘खबर’
होते नहीं जनता के दुख-दर्द
पत्रकारिता कर ऐसी तू ‘सत्य’-‘मिशन’
की मौत न हो। 95
‘झिंगुरी’,
‘दातादीन’ को
जो अब रहा पछाड़
‘होरी’
के गुस्सैले बेटे ‘गोबरधन’
की मौत न हो। 96
सारे दल ही दिख रहे आज कोयला-चोर
मनमोहन की फाइल में जा यूँ ईंधन की मौत न हो। 97
जिसके भीतर प्यार के कुछ पावन संकेत
बड़े दिनों के बाद दिखी ऐसी चितवन की मौत न हो। 98
लिया उसे पत्नी बना जिसका पिता दबंग
सारी बस्ती आशंकित है अब हरिजन की मौत न हो। 99
इस कारण ही तेवरी लिखने बैठे आज
किसी आँख से बहें न आँसू,
किसी सपन की मौत न हो। 100
यही चाहता देश में एक तेवरीकार
चलती रहे
क्रिया ये हरदम अरिमर्दन की मौत न हो। 101
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रमेशराज, 15\109, ईसानगर , निकट-थाना
सासनी गेट , अलीगढ़-२०२००१, मो. 9634551630
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-09-2016) को "हिन्दी, हिन्द की आत्मा है" (चर्चा अंक-2460) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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