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5 नवंबर 2017

ग़ज़ल



अफसान-ऐ-दर्द को नज्मो की तरह गाने की जरूरत नही है।
आश्ना हु मैं हाँ अब तुम्हे कुछ भी  बताने  की  जरूरत नही है।।

बन्द हो चुके  उसके लिए  अब इन  दिनों  इस राह के दरवाजे।
कह दो उसे उसको अब दिल-ए-राह आने की जरूरत नही है।।

हँस कर  हर  दफा  छोड़  देता  है  तुझे  वो बहुत  आसानी  से।
हर बार  की तरह  फिर से लौट कर आने  की जरूरत नही  है।।

हर तरफ ये कैसा  फ़ुसूँ है उस  सितमगर  की  हँसी  यादों  का।
हूँ तलबगार इन सब  का  इनको  मिटाने  की  जरूरत  नही है।।

तू अब कहा भी क्यों नही देता सितमगर के सभी  राज  जनिब।
उसका गम़्माज़ नही 'मित्रा' उससे छुपाने की  जरूरत  नही  है।।


           ---- हिमांशु मित्रा 'रवि' ---

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"



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  2. बहुत खूब ....
    लाजवाब शेर हैं सर ग़ज़ल के ...

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