मुझको फिर से बेकस कर दो तुम।
दर्द से फिर इस दिल को भर दो तुम।।
कर लो नफरत जिंतनी करनी है ।
पर लो मुझको मुरदा कर दो तुम।।
मिल कर तुझसे किस्मत -ए- मुजरिम हूँ ।
कुछ तो महफ़िल मे अच्छा कर दो तुम।।
दिल की धड़कन रुकने लगती है।
इस गुलशन को सहरा कर दो तुम।।
मुझको कहकर अपना इन सब से।
मुझको फिर से अपना कर लो तुम।।
-- हिमांशु मित्रा 'रवि' --
वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
सादर....
हार्दिक आभार आपका
हटाएंवाह!!बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल।