ब्लौग सेतु....

24 अक्टूबर 2017

हमरी ताउम्र की पतझर भइली.....डॉ .राकेश श्रीवास्तव

रउवा अइली तो जिन्दगी अइली ;
रउवा गइली तो जिन्दगी गइली .

ना पसीजी कसम ओ विनती से ;
रउवा काहे कठोर हो गइली .

प्रेम की ज्योति बुझइलू रउवा ;
आग हमरी घंघोर हो गइली .

रउवा कोंपल नई उगा लेबू ;
हमरी ताउम्र की पतझर भइली .

हमरी अंखिअंन में ख्वाब फिर न बसें ;
रउवा अंसुअंन का पहरा दे गइली .

दिल - लगी रउवा दिल्लगी समझी ;
दिल की दुर्गति हमार कर गइली .

रउवा खातिर जो मोहब्बत खेला ;
हमरा खातिर तो इबादत रहिली .

हम केहू से नहीं कहा दुखड़ा ;
ढल के ग़ज़लन में , शोर हो गइली .
गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ > रउवा = आप / तुम )

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-10-2017) को
    "प्रीत के विमान पर, सम्पदा सवार है" (चर्चा अंक 2768)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हम केहू से नहीं कहा दुखड़ा ;
    ढल के ग़ज़लन में , शोर हो गइली

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