एक रोज छुपा दूंगा
सारे लफ्ज तुम्हारे
और तुम मेरी खामोशी
पर फिसल जाओगी!!
देखता हूँ कब तलक
छुपी रहोगी मुझसे
एक दिन अपनी ही
नज्म से पिघल जाओगी!!
और कितने चांद
मेरे लिए संभालोगी
मुझे यकीन है कि
तुम रातें बदल डालोगी
मैंने भी रख लिए हैं
कुछ चादं तुम्हारे
मेरे एक ही ख्वाब से
बेशक तुम जल जाओगी!!
अब दोनों होगें ही
तो नज्म नज्म खेलेंगे
वो गोल ना सही
दिल सा भी हो तो ले लेगें
मैने भी भर लिये
कुछ अल्फाज़ तुम्हारे
मेरी खामोशी से
यकीनन तुम बदल जाओगी!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंDigvijay sir... Thank you so much... And sorry for late response
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाहःहः
जवाब देंहटाएं