प्रस्तुत है श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी(जो न केवल एक सफल राजनेता बल्कि सहृदय कवि भी रहे हैं ) की यह कविता……………………. …………
मैंने जन्म नहीं मांगा था, किन्तु
मरण की मांग करूंगा
जाने कितनी बार जिया हूँ
जाने कितनी बार मरा हूँ
जन्म - मरण के फेरे से मैं
इतना पहले नहीं डरा हूँ
अंतहीन अंधियार ,ज्योति की
कब तक और तलाश करूंगा
मैंने जन्म नहीं मांगा था, किन्तु
मरण की मांग करूंगा
बचपन ,यौवन और बुढ़ापा
कुछ दशकों में ख़तम कहानी
फिर - फिर जीना, फिर -फिर मरना
यह मजबूरी या मनमानी
पुनर्जन्म के पूर्व बसी
दुनियां का द्वाराचार करूंगा
मैंने जन्म नहीं मांगा था, किन्तु
मरण की मांग करूंगा
अद्भुत ...आभार साझा करने का
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना अटल जी की...
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
जवाब देंहटाएंभारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
आनंद आ गया ... इतनी प्रखर, लाजवाब रचना ... नमन है अटल जी का ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द संयोजन और भाव लिए मन को छूती रचना पढ़वाने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
विद्यालय के पुस्तकालय में अटल जी का काव्य-संग्रह था । सचमुच वो एक कुशल प्रशासक के साथ एक बहुत अच्छे कवि भी हैं । सुंदर कविता ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीपमें शामिल किया गया है ।
प्रखर, लाजवाब ,मन को छूती रचना
जवाब देंहटाएंवह बहुत खूब ...एक जीवन ...एक सोच को यहाँ साँझा करने के लिए
जवाब देंहटाएंसादर