मुद्दतों पहले एक शाम बिन बताये घर पहुँचा था
माँ आज भी शाम को चार रोटी अधिक बनाती है!
मुद्दतों पहले मजाक़ में ही माँ से कहा था, कि
तेरे आज के उपवास ने मुझे एक दुर्घटना से बचा लिया
माँ आज भी हर रविवार को उपवास रखती है !
मुद्दतों पहले जिस खिलौने के टूटने पर मैं खूब रोया था
माँ आज भी उस टूटे खिलौने को मेज पर सजा के रखती है !
मुद्दतों पहले मैंने माँ के जिस साड़ी में आसूँ पोछे थे
माँ आज भी उस साड़ी पर हाथ फेर रोया करती है !
मुद्दतों पहले मेरे बीमार होने पर
माँ ने बगल के दरगाह में मन्नत मांगी थी
माँ आज भी हर शाम उस दरगाह में सजदा करने जाती है !
मुद्दतों हुए माँ से मिले, उसकी आखों से वो दुनिया देखे
जिसमें परियां होती थी, राजा रानी की अठखेलियाँ होती थी
फिर एक सुहानी नींद होती थी !
मुद्दतों हुए माँ से मिले!
माँ आज भी शाम को चार रोटी अधिक बनाती है!
मुद्दतों पहले मजाक़ में ही माँ से कहा था, कि
तेरे आज के उपवास ने मुझे एक दुर्घटना से बचा लिया
माँ आज भी हर रविवार को उपवास रखती है !
मुद्दतों पहले जिस खिलौने के टूटने पर मैं खूब रोया था
माँ आज भी उस टूटे खिलौने को मेज पर सजा के रखती है !
मुद्दतों पहले मैंने माँ के जिस साड़ी में आसूँ पोछे थे
माँ आज भी उस साड़ी पर हाथ फेर रोया करती है !
मुद्दतों पहले मेरे बीमार होने पर
माँ ने बगल के दरगाह में मन्नत मांगी थी
माँ आज भी हर शाम उस दरगाह में सजदा करने जाती है !
मुद्दतों हुए माँ से मिले, उसकी आखों से वो दुनिया देखे
जिसमें परियां होती थी, राजा रानी की अठखेलियाँ होती थी
फिर एक सुहानी नींद होती थी !
मुद्दतों हुए माँ से मिले!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (10-05-2014) को "मेरी हैरानियों का जवाब बस माँ" (चर्चा मंच-1608) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Shukriya Shastriji
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंShukriya Sanjayji
हटाएंमाँ को समर्पित बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
Shukriya Reenaji
हटाएंमाँ का ह्रदय अपने में ममता का सागर लिये होता है और हम कहीं भी रहे वह हमारे ह्रदय में हिलोरें मारता रहता है।
जवाब देंहटाएंमाँ के लिये स्नेह की बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति है ।
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