झगड़ रहीं थीं दिशायें
जिनके बीच
सहमी खड़ी थी हवा
अपने आगोश में
लिए तेरी खुशबू
रो रहें थें सजे रास्ते
चुप थें बातूनी पत्ते
खुशी से लहरा रहे थें
तो केवल कुछ घास के तिनके
जिनपे खड़ी थी हवा
लिए तेरी खुशबू
जिनके बीच
सहमी खड़ी थी हवा
अपने आगोश में
लिए तेरी खुशबू
रो रहें थें सजे रास्ते
चुप थें बातूनी पत्ते
खुशी से लहरा रहे थें
तो केवल कुछ घास के तिनके
जिनपे खड़ी थी हवा
लिए तेरी खुशबू
वाह.....बहुत खूब
जवाब देंहटाएं-सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 05/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
कल्पना करें कैसा होगा वह पल ?सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महेंद्रजी !!
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