ब्लौग सेतु....

2 मई 2014

तेरी खुशबू के लिये

झगड़ रहीं थीं दिशायें
जिनके बीच
सहमी खड़ी थी हवा
अपने आगोश में
लिए तेरी खुशबू

रो रहें थें सजे रास्ते
चुप थें बातूनी पत्ते

खुशी से लहरा रहे थें
तो केवल कुछ घास के तिनके
जिनपे खड़ी थी हवा
लिए तेरी खुशबू

4 टिप्‍पणियां:

  1. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 05/05/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  2. कल्पना करें कैसा होगा वह पल ?सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

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