ब्लौग सेतु....

4 जनवरी 2016

आख़िर कब तक..........राजेश्वरी जोशी










आख़िर कब तक,
शब्दों को मेरे 
तुम बंदी बना पाओगे
एक ना एक दिन
तो तुम्हारे द्वारा 
चिनी गयी ये 
रूढ़ियों की दीवारें
मेरे विचारों की
तेज़ आँधियों से
टूट कर गिर जाएँगी

मेरे शब्द उड़ने लगेंगे
दूर-दूर तक हवा में
करने लगेंगे फूल-पत्ती,
नदी पर्वत से संवाद
कण-कण से टकराएँगे
दूर-दूर तक फैल जाएँगे
धरती से अंबर तक 

और फिर होगा
नया एक प्रभात
रूढियों से मुक्त समाज
लिखेगा एक नया इतिहास।

-राजेश्वरी जोशी

नाम : श्रीमती राजेश्वरी जोशी (स.अ.)
उधम सिंह नगर, उत्तराखंड
जन्म : 8 जून 1968
शिक्षा : एम.एससी. बी.एड
सम्पर्क : rajeshwaripantjoshi22@gmail.com

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना...
    नववर्ष मंगलमय हो।
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय मैं इस मंच पर अपनी कविता भेजना चाहती हूँ।
    कैसे भेजू बताने का कष्ट करे

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं

    जवाब देंहटाएं
  5. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं कृपया मार्गदर्शन करें

    जवाब देंहटाएं
  7. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं कृपया मार्गदर्शन करें

    जवाब देंहटाएं
  8. मैं अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहती हूं कृपया मार्गदर्शन करें

    जवाब देंहटाएं
  9. काश! नववर्ष मे जादू की छड़ी

    काश! नववर्ष मेंजादू की छड़ी,
    मुझको भी मिल जाती ।
    सारी दुनिया के साथ मिल,
    मैं भी नववर्ष मनाती।

    जोर- जोर से उसे घुमाती।
    भारत माता को कष्टों से,
    जल्दी से मैं मुक्त कराती।
    खुशी से नववर्ष मनाती।

    कोरोना को दूर भगाती,
    सारी दुनिया को बचाती।
    सारी दुनिया को हँसाती,
    सारे जग का दुःख मिटाती।

    ना कोई भ्रष्टाचारी होता,
    ना कोई कालाबाजारी।
    हर कोई मेहनत की खाता,
    हर कोई हँसता गाता ।

    ना कोई आतंकी होता,
    ना रक्त की नदिया बहती ।
    ईद दीवाली साथ मनाते,
    सब को हँसकर गले लगाते ।

    हर बाला पढ़ने जाती,
    हर बच्चा हँसता मुस्कुराता।
    घर- घर शिक्षा की अलख जगाती,
    रूढ़ियों को दूर भगाती।

    प्रदूषण मुक्त धरती हो जाती,
    हर और हरियाली छाती।
    नदिया बहती फिर से छल- छल,
    दुग्ध- धवल सरिता बन जाती।

    काश! जादू की छड़ी मिल जाती ,
    जोर- जोर से उसे घुमाती ।
    सबके साथ मिल नववर्ष मनाती,
    सबके जीवन में खुशियाँ लाती।
    स्वरचित
    राजेश्वरी जोशी,
    उत्तराखंड काश! नववर्ष मे जादू की छड़ी

    काश! नववर्ष मेंजादू की छड़ी,
    मुझको भी मिल जाती ।
    सारी दुनिया के साथ मिल,
    मैं भी नववर्ष मनाती।

    जोर- जोर से उसे घुमाती।
    भारत माता को कष्टों से,
    जल्दी से मैं मुक्त कराती।
    खुशी से नववर्ष मनाती।

    कोरोना को दूर भगाती,
    सारी दुनिया को बचाती।
    सारी दुनिया को हँसाती,
    सारे जग का दुःख मिटाती।

    ना कोई भ्रष्टाचारी होता,
    ना कोई कालाबाजारी।
    हर कोई मेहनत की खाता,
    हर कोई हँसता गाता ।

    ना कोई आतंकी होता,
    ना रक्त की नदिया बहती ।
    ईद दीवाली साथ मनाते,
    सब को हँसकर गले लगाते ।

    हर बाला पढ़ने जाती,
    हर बच्चा हँसता मुस्कुराता।
    घर- घर शिक्षा की अलख जगाती,
    रूढ़ियों को दूर भगाती।

    प्रदूषण मुक्त धरती हो जाती,
    हर और हरियाली छाती।
    नदिया बहती फिर से छल- छल,
    दुग्ध- धवल सरिता बन जाती।

    काश! जादू की छड़ी मिल जाती ,
    जोर- जोर से उसे घुमाती ।
    सबके साथ मिल नववर्ष मनाती,
    सबके जीवन में खुशियाँ लाती।
    स्वरचित
    राजेश्वरी जोशी,
    उत्तराखंड

    जवाब देंहटाएं
  10. राजेश्वरी जोशी

    दिल तो एक परिंदा है

    मुक्त गगन में उड़ना चाहता,
    दिल का ये परिंदा है।
    नही भाता इसको कोई पिंजरा,
    दिल तो एक परिंदा है।

    ना चाहता है ये सोना- चांदी,
    ना ही चाहता हीरा- मोती है।
    प्यार जहा मिलता है इसको,
    वही इसका रैन बसेरा है ।

    मजहबों की दीवार तोड़कर,
    दुनिया के दस्तूरों से दूर।
    ना रस्मों के बंधन में जकड़े,
    प्यार भरे दिल में जिंदा है।

    फिरता डाली-डाली दिल की,
    ये तो रहता हरदम खिलंदा है ।
    गौरी की नैनों की मदिरा पीकर,
    मस्त होकर झूमता परिंदा है।

    भूली बिसरी यादों का हमारी,
    दिल तो एक पुलिंदा है।
    मुक्त गगन में उड़ना चाहता,
    दिल का ये परिंदा है।

    ये रचना स्वरचित व मौलिक है।
    राजेश्वरी जोशी,
    उत्तराखंड


    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...