मीठे सोच हमारे, स्वारथवश कड़वाहट धारे
भइया का दुश्मन अब भइया घर के भीतर है।
इक कमरे में मातम, भूख गरीबी अश्रुपात गम
दूजे कमरे ताता-थइया घर के भीतर है।
नित दहेज के ताने, सास-ननद के राग पुराने
नयी ब्याहता जैसे गइया घर के भीतर है।
नम्र विचार न भाये, सब में अहंकार गुर्राये
हर कोई बन गया ततइया घर के भीतर है।
नये दौर के बच्चे, तुनक मिजाजी-अति नकनच्चे
- रमेशराज
rameshraj5452@gmail.com
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|| लोक-शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
आदरणीया यशोदा जी कविता मंच में 1 तेवरी को स्थान देने हार्दिक आभार , आशा है अन्य तेवरियों को भी स्थान देने की कृपा करेंगी | आभार सहित-रमेशराज
जवाब देंहटाएंस्वागत करती हूँ आपका..
हटाएंकल आपकी रचना पाँच लिंकों के आनन्द मे रखी जा रही है
सादर...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-08-2016) को "ले चुग्गा विश्वास से" (चर्चा अंक-2442) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'