ब्लौग सेतु....

23 दिसंबर 2017

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं.....राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं   

-राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर 

64 टिप्‍पणियां:

  1. ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
    है अपना ये त्यौहार नहीं
    है अपनी ये तो रीत नहीं
    है अपना ये व्यवहार नहीं....बहुत खूब यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Ye nav varsh hume swikarya nhi
      Hai apna ye tyohar nhi

      हटाएं
    2. Sir
      I read a poem geetkar
      It's starting paragraph was
      kaise geet likha krte hain
      Geetkar mujhko batlao
      Prashno uljhi jeewan dori
      Se kaise suljha krte hain

      Geetkar mujhko batlao

      I don't remember poet name
      I need that poem complete
      Can anyone help

      हटाएं
    3. ये नव वर्ष हमे स्वीकार नही, है अपनी ये त्योहार नही!

      हटाएं
    4. हमे अंग्रेजी भाषा स्वीकार नहीं
      ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

      हटाएं
    5. ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
      है अपना ये त्यौहार नहीं
      है अपनी ये तो रीत नहीं
      है अपना ये व्यवहार नहीं
      धरा ठिठुरती है सर्दी से
      आकाश में कोहरा गहरा है
      बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
      सर्द हवा का पहरा है
      सूना है प्रकृति का आँगन
      कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
      हर कोई है घर में दुबका हुआ
      नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
      चंद मास अभी इंतज़ार करो
      निज मन में तनिक विचार करो
      नये साल नया कुछ हो तो सही
      क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
      उल्लास मंद है जन -मन का
      आयी है अभी बहार नहीं
      ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
      है अपना ये त्यौहार नहीं
      ये धुंध कुहासा छंटने दो
      रातों का राज्य सिमटने दो
      प्रकृति का रूप निखरने दो
      फागुन का रंग बिखरने दो
      प्रकृति दुल्हन का रूप धार
      जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
      शस्य – श्यामला धरती माता
      घर -घर खुशहाली लायेगी
      तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
      नव वर्ष मनाया जायेगा
      आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
      जय गान सुनाया जायेगा
      युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
      नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
      आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
      नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
      अनमोल विरासत के धनिकों को
      चाहिये कोई उधार नहीं
      ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
      है अपना ये त्यौहार नहीं
      है अपनी ये तो रीत नहीं
      है अपना ये त्यौहार नहीं

      -राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर

      हटाएं
    6. ये नव वर्ष हमें कतई स्वीकार नहीं है l

      हटाएं
    7. यह दिनकर जी की रचना नहीं है।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. यह दिनकर की कविता नही है।उनके नाम पर कूड़ा-कचड़ा न परोसें। दिनकर नाम को कंधा बना गोली न चलाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह दिनकर जी की नहीं है I ये अंकुर 'आनंद' , १५९१/२१ , आदर्श नगर , रोहतक (हरियाणा ) की मौलिक रचना है I ये रचना दिनकर जी की किसी पुस्तक में नहीं मिलेगी I

      हटाएं
    2. कृपया बताएं यह रचना पहली बार इंटरनैट पर कब और कहां से आई?

      हटाएं
  4. कविता में अनेक स्थलों पर लय भंग है और विषयवस्तु भी एक खास चश्मे से देखने लायक़ है । इससे लगता है यह रचना दिनकर की नहीं है। उद्धरण का स्रोत भी नहीं दिया गया है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह दिनकर जी की नहीं है I ये अंकुर 'आनंद' , १५९१/२१ , आदर्श नगर , रोहतक (हरियाणा ) की मौलिक रचना है I ये रचना दिनकर जी की किसी पुस्तक में नहीं मिलेगी I

      हटाएं
    2. यदि आप ही अंकुर 'आनन्द' हैं तो कृपया अपना ई-मेल या मोबाइल नं. साझा करें.. जिससे कि हम आपसे सम्पर्क कर पायें और तथ्यों को जान पायें।

      हटाएं
  5. महोदय/महोदया, मैं पिछले कई दिनों से यह कविता ढूंढ़ रहा हूँ पर दिनकर जी की कृतियों में यह शामिल नहीं दिखी।https://plus.google.com/115286053296986646178/posts/iKyVM9oeuQn
    RAJEEVKUMAR SHRIVASTAVA के अनुसार इसके रचयिता मान्धाता प्रताप सिंह जी हैं.
    http://aryamantavya.in/ye-nav-varsh-hame-swikaar-nahi/ रविन्द्र आर्य जी के अनुसार किसी कवि की रचना है ~ अज्ञात
    आशा है उचित संदर्भ देकर मेरी इस छोटी जिज्ञासा को शांत करेंगे।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह दिनकर जी की नहीं है I ये अंकुर 'आनंद' , १५९१/२१ , आदर्श नगर , रोहतक (हरियाणा ) की मौलिक रचना है I ये रचना दिनकर जी की किसी पुस्तक में नहीं मिलेगी I

      हटाएं
    2. यदि यह दिनकर की है तो संकलित पुस्तक का नाम बताइए. आप भाषा तो सही रखिए. साहित्यकार की ऐसी भाषा? धन्य होMR. UNKNOWN.

      हटाएं
    3. Unknown संस्कार जैसे मिले वो बात उन्ही के आधार पर करेगा

      हटाएं
  6. प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह दिनकर जी की नहीं है I ये अंकुर 'आनंद' , १५९१/२१ , आदर्श नगर , रोहतक (हरियाणा ) की मौलिक रचना है I ये रचना दिनकर जी की किसी पुस्तक में नहीं मिलेगी I

    जवाब देंहटाएं
  7. सोशल मीडिया में यह कविता महाकवि दिनकर जी के नाम से छाई हुई थी-मैंने भी अपने यु ट्यूब वीडियो में महाकवि दिनकर जी के नाम से इसको आवाज देते हुए अपनी कविता के तार जोड़े पर रोहतक से कवि अंकुर आनंद ने मेरे वीडियो लिंक के कमेंट बॉक्स पर इस रचना को अपना बताया और उन्होंने यहां पर भी इस बात को उठाया है।
    दूसरे कमेंट्स भी यह बता रहे है कि यह कविता दिनकर जी की नही है।
    गलत प्रचार की वजह से रचना किसी की औऱ नाम किसी का आ जाने से रचियता के अधिकार पर प्रहार होता है।
    इसलिए यहां पर विशेषकर साइट ,ब्लॉग पर विशेष सतर्कता आवश्यक है।
    रचना अपने आप मे भावों से परिपूर्ण व एक बड़े सन्देश को देती हुई है औऱ अब तो कवि दिनकर के नाम के स्पर्श से परिपूर्ण औऱ प्रचारित भी हो गई है।
    रचना के वास्तविक रचनाकार बधाई के पात्र है।

    संजय सनम
    संपादक-फर्स्ट न्यूज़

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. चूँकि कविता अंकुर "आनंद" की है, "दिनकर" जी की नहीं, ब्लॉग का शीर्षक बदल दिया जाना चाहिए, ताकि कविता मंच से ग़लतफ़हमी और न फैले...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कम से कम शीर्षक के अंत में ? तो जोड़ा जसक्त है! वास्तविक लेखक के साथ न्याय करने के लिए।
      अंकुर जी आप अपनी बात को सप्रमाण रखे तो उचित रहेगा।
      gupta.hemant123@gmail.com
      मैं भी तभी आपकी मददकर पाऊंगा !

      हटाएं
  10. कृपया सर मुझे मूल रचना मेल करें, मैं इस रचना को आपके नाम आगे प्रेषित करूंगा

    जवाब देंहटाएं
  11. दिनकर जी की कविता में लय भंग होना और वो भी इतनी बार ?????!!!?! साज़िशन इस कविता को दिनकर जी के नाम पर प्रसिद्ध लिया जा रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  12. मैं आप साहित्य मर्मज्ञों की मान लेता हूँ कि ये पंक्तियां दिनकर जी की नही हैं ,तो मूल रचनाकार प्रमाणिकता से इसे पुष्टि प्रदान करें...
    निश्चित ही भावों से परिपूर्ण रचना के मूल रचनाकार हार्दिक बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।
    प्रसून चतुर्वेदी

    जवाब देंहटाएं
  13. ग़ालिब और गुलज़ार के बाद अब दिनकर जी का नाम ले कर विचारधारा थोपी जा रही है ये ग़लत है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विचारधारा थोपी नही जा रही, यही सत्य है! जहां तक किसी और का नाम ले कर प्रचारित करने की बात है, उसमे फॉरवर्ड करने वालो का दोष है, अंकुर जी बार बार कह रहे हैं, यह उनकी रचना है।

      हटाएं
    2. सत्य की पहली जिम्मेदारी है कि पसरने के लिए तथ्य की खटिया का इस्तेमाल करे।
      यह कविता दिनकर के नाम से इतनी ज्यादा फैल चुकी है कि अंकुर जी का दावा फिजूल हो चुका है।

      हटाएं
  14. यदि इसमें कोई विचारधारा थोपने की बात है तो कृपया बताए कि जूलीयन/ग्रेगोरीयन कैलेंडर किस प्रकार भारतीय कहला सकता है? क्या आप जुइस सीज़र की संतान हैं? पोप ग्रेगरी तो अविवाहित थे. फिर भी यदि आप के अनुसार वे भारतीय थे, तो आप इसे लिखे. मई आप का समर्थन करूँगा.

    जवाब देंहटाएं
  15. ये रामधारी जी की ही रचना है।
    कोई अंकुर की नहीं। जय श्री राम

    जवाब देंहटाएं
  16. अंकुर जी आप कृपया अपना सम्‍पर्क नम्‍बर दें

    जवाब देंहटाएं
  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  18. रामधारीसिंह जी की तरह लय बद्ध नहीं है
    जिस पैमाने में ग़ज़ल लिखने के लिये मीर इकबाल ने मात्रा गिराने या उठाने की छूट ली है उसी पैमाने में कविता लिखने के लिये दिनकर जी ने ऐसी कविता लिखी कि पूरी कविता में एक भी जगह मात्रा में हेर फेर नहीं करना पडा
    उदाहरण
    आये हैं मीर काफिर होकर ख़ुदा के घर में-मीर
    सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा-इकबाल
    धुँधली हुई दिशाएं छाने लगा कुहासा-दिनकर (आग की भीख)

    जवाब देंहटाएं
  19. एकदम स्पष्ट करें कोई कि यह दिनकर जी की रचना है या नहीं

    जवाब देंहटाएं
  20. दिनकर जी की रचना कतई नहीं है। बेवजह उनके नाम से शेयर की जा रही है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप साक्ष्य बताये की यह कविता दिनकर जी कि नहीं है।

      हटाएं
  21. कविता का प्रमाण भी डालें, इससे साफ हो जायेगा,की रामधारी सिंह दिनकर जी है या अंकुर जी का ।।
    ।।

    जवाब देंहटाएं
  22. रचना अच्छी है लेकिन रचयिता पर स॑सय हो गया है

    जवाब देंहटाएं
  23. वाकई कविता अच्छी है ये कविता दिनकर जी की है या नही पर भारतीय नववर्ष की उपयोगिता को खूबसूरत तरीके से स्पष्ट किया है और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर जो नववर्ष हम मनाते है उसकी निरर्थकता को क्या लाजवाब अंदाज़ में दर्शाया हैं। मनोज कुमार निवासी टटीरी बागपत उत्तर प्रदेश।

    जवाब देंहटाएं
  24. जिसने भी लिखी भाव व सन्दर्भ सही दिए। बधाई है उसे।

    जवाब देंहटाएं
  25. मैंने कई जगह देखा है कि रोहतक से अंकुर आनंद जी ने इस पर अपना दावा किया है अगर ये सच है तो असली रचयिता को पहचान मिलनी चाहिए ।।कविता कर बोल अच्छे है और कई वर्ष से नववर्ष की प्रथम तिथि को हमारे सामने दिनकर जी के नाम से आ जाती है ।

    जवाब देंहटाएं
  26. Still we are undecided without any proof of who the author is. Please clarify - O Learned Ones !!

    जवाब देंहटाएं
  27. सही जानकारी सभी को मिले ताकि जिज्ञासा शांत हो सके।

    जवाब देंहटाएं
  28. भारतीय संस्कृति पर ज़ोर देती बहुत अच्छी कविता है जो हर नववर्ष पर दिनकर जी के नाम से पुनः पुनः प्रसारित/अग्रेषित होती रहती है। कोई सच्चा रचनाकार ही राष्ट्रकवि के नाम से प्रसारित रचना को अपनी होने का दावा कर सकता है। अतः यह रचना रोहतक के अंकुर आनन्द जी की है ऐसा मेरा मन कहता है। दुःखद बात है इससे जहाँ नवपीढ़ी भ्रमित हो रही है,वहीं मूल रचयिता को वह सम्मान नहीं मिल रहा है,जो मिलना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत बढ़िया कहा है दिनकर जी ने

    जवाब देंहटाएं
  30. Jinhone yh Kavita likhi he unhe sat sat namn shibjankari de jisse jigsa shant ho

    जवाब देंहटाएं
  31. जिस किसी भी सज्जन ने यह काव्य कृति लिखी है, काबिले तारीफ है। तुकबंदी, लय और तराने से ज्यादा इसके शब्दों की गहराई बहुत ही सुंदर है। वैसे भी भाषा और शब्दों के शरीर नहीं होता। बस ज्यादा चिरफाड करने से भाषा की आत्मा और उसका काव्य सौंदर्य खत्म हो जाता है। बीज चाहे बेडोल हो या सुडोल उसमें पूरे वट वृक्ष को आकार देने की क्षमता होती है।
    अतः जिस किसी ने भी लिखा उसका साधुवाद

    T N SHREEDHAR
    एक काव्य प्रेमी और साहित्य का विद्यार्थी

    जवाब देंहटाएं
  32. बावजूद तमाम मुबाहसा के पता नहीं चला कि यह रचना किनकी है ..

    जवाब देंहटाएं
  33. In the present time, it should npt be difficult to find out whether it is of Ramdhari Dinkar Ji or not. If not, who is its writer?

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...