राजेश त्रिपाठी
आज का आदमी
लड़ रहा है,
कदम दर कदम,
एक नयी जंग।
ताकि बचा रहे उसका वजूद,
जिंदगी के खुशनुमा रंग।
जन्म से मरण तक
बाहर से अंतस तक
बस जंग और जंग।
जिंदगी के कुरुक्षेत्र में
वह बन गया है
अभिमन्यु
जाने कितने-कितने
चक्रव्यूहों में घिरा हुआ
मजबूर और बेबस है।
उसकी मां को
किसी ने नहीं सुनाया
चक्रव्यूह भेदने का मंत्र
इसलिए वह पिट रहा है
यत्र तत्र सर्वत्र।
लुट रही है उसकी अस्मिता,
उसका स्वत्व
घुट रहे हैं अरमान।
कोई नहीं जो बढ़ाये
मदद का हाथ
बहुत लाचार-बेजार है
आज का आदमी।
सुन्दर भाव पूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय वीरेंद्र भाई नमस्कार। मेरे भाव अच्छे लग इसके लिए आपका आभार। पस यों ही बनाये रखिएगा अपना प्यार।
हटाएंप्रिय वीरेंद्र भाई नमस्कार। आपको अच्छे लगे मेरे भाव इसके लिए आपका आभार। बस इसी तरह बनाये रखिएगा अपना प्यार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी नमस्कार। आपको भाये मेरे विचार, इसके लिए बहुत-बहुत आभार। ऐसी कृपा से हमारा बढ़ता है उत्साह। दिल में उत्कट हो उठती कुछ
हटाएंऔर अच्छा लिखने की चाह।
सुंदर रचना के लिये शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंप्रिय कुलदीप जी यह तो है आपका हम पर प्यार। जिसके लिए आपका आभार। आपके ऐसे विचार बढ़ाते हैं उत्साह। इससे मिलती है नया कुछ रचने की चाह।
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