है जिंदगी एक छलावा
पल पल रंग बदलती है
है जटिल स्वप्न सी
कभी स्थिर नहीं रहती |
जीवन से सीख बहुत पाई
कई बार मात भी खाई
यहाँ अग्नि परीक्षा भी
कोई यश न दे पाई |
अस्थिरता के इस जालक में
फँसता गया ,धँसता गया
असफलता ही हाथ लगी
कभी उबर नहीं पाया |
रंग बदलती यह जिंदगी
मुझे रास नहीं आती
जो सोचा कभी न हुआ
स्वप्न बन कर रह गया |
छलावा ही छलावा
सभी ओर नज़र आया
इससे कैसे बच पाऊँ
विकल्प नज़र नहीं आया !!
-- आशा लता सक्सेना
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुलदीप जी
हटाएंनिराशा और उदासी से क्यों भला हम घबराएं
जवाब देंहटाएंकर्मों की रौशनी से आशा के सर्वदा दीप जलाएं
सुर S
टिप्पणी हेतु धन्यवाद
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