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4 जनवरी 2014

अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी

 

 

 

 राजेश त्रिपाठी

पूछो न किस तरह से गुजारी है जिंदगी।
अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी।।
आंखें खुलीं तो सामने अंधियारा था घना।
असमानता अभाव का माहौल था तना।।
मतलब भरे जहान में असहाय हो गये।
दुख दर्द मुश्किलों का पर्याय हो गये।।
दुनिया के दांव पेच से हारी है जिंदगी। (अश्कों के फूल ...)
आहत हुईं भलाइयां, सतता हुई दफन।
युग आ गया फरेब का, क्या करें जतन।।
ऐसे बुरे हालात की मारी है जिंदगी (अश्कों के फूल ...)
चेहरे पे जहां चेहरा लगाये है आदमी।
ईमानो-वफा बेच कर खाये है आदमी।।
हर सिम्त नफरतों के खंजर तने जहां।
कैसे वजूद अपना बचायेगा आदमी।।
जीवन की धूपछांव से हारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)
सियासत की चालों का देखो असर।
आग हिंसा की फैली शहर दर शहर।।
आदमी आदमी का दुश्मन बना है।
हर तरफ नफरतों का अंधेरा घना है।।
इन मुश्किलों के बीच हमारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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    उत्तर
    1. नीतीश जी धन्यवाद आपको भाये मेरे भाव। ऐसे प्रोत्साहन से बढ़ता है नया कुछ रचने का चाव। यों ही करते रहे हौसलाआफजाई। आपका हम पर बड़ा उपकार है भाई।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. आपने की हमारी हौसलाआफजाई। बधाई दिल से आपको है भाई। यों ही बनाये रहिएगा अपना प्यार। ऐसे प्रोत्साहन ही हैं अच्छा लिखवाने के आधाऱ।

      हटाएं
  3. प्रिय भाई, आपका आभार। ऐसे ही बनाये रहिएगा प्यार। यही तो है हमारे प्रोत्साहन का आधार। अापने अपने मंच में दिया स्थान। इसके लिए धन्यवाद श्रीमान।।

    जवाब देंहटाएं

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