राजेश त्रिपाठी
अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी।।
आंखें खुलीं तो सामने अंधियारा था घना।
असमानता अभाव का माहौल था तना।।
मतलब भरे जहान में असहाय हो गये।
दुख दर्द मुश्किलों का पर्याय हो गये।।
दुनिया के दांव पेच से हारी है जिंदगी। (अश्कों के फूल ...)
आहत हुईं भलाइयां, सतता हुई दफन।
युग आ गया फरेब का, क्या करें जतन।।
ऐसे बुरे हालात की मारी है जिंदगी (अश्कों के फूल ...)
चेहरे पे जहां चेहरा लगाये है आदमी।
ईमानो-वफा बेच कर खाये है आदमी।।
हर सिम्त नफरतों के खंजर तने जहां।
कैसे वजूद अपना बचायेगा आदमी।।
जीवन की धूपछांव से हारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)
सियासत की चालों का देखो असर।
आग हिंसा की फैली शहर दर शहर।।
आदमी आदमी का दुश्मन बना है।
हर तरफ नफरतों का अंधेरा घना है।।
इन मुश्किलों के बीच हमारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
नीतीश जी धन्यवाद आपको भाये मेरे भाव। ऐसे प्रोत्साहन से बढ़ता है नया कुछ रचने का चाव। यों ही करते रहे हौसलाआफजाई। आपका हम पर बड़ा उपकार है भाई।
हटाएंलाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
आपने की हमारी हौसलाआफजाई। बधाई दिल से आपको है भाई। यों ही बनाये रहिएगा अपना प्यार। ऐसे प्रोत्साहन ही हैं अच्छा लिखवाने के आधाऱ।
हटाएंप्रिय भाई, आपका आभार। ऐसे ही बनाये रहिएगा प्यार। यही तो है हमारे प्रोत्साहन का आधार। अापने अपने मंच में दिया स्थान। इसके लिए धन्यवाद श्रीमान।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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