संसार कर्म प्रधान है, बिना कर्म के
कुछ भी सम्भव
नहीं। थोड़ा पढ़-लिख कर
व्यक्ति सोचता है कि कर्म
करूंगा तो फल मिलेगा, वो फल इस
जन्म में या अगले
जन्म में भोगना पड़ेगा। इससे
अच्छा है कि कर्म
ही ना करूं, फिर फल
नहीं मिलेगा और इस
तरह मैं मुक्त
हो जाऊंगा। जबकि भगवान कह रहे
हैं कि कर्म किए
बिना न तो योग
सिद्धि मिलेगी और न ही मुक्ति।
उनका साफ संदेश है कि हमें कर्म बंद
नहीं करना है।
निठल्ला या खाली होकर
नहीं बैठना है,
क्योंकि जो निठल्ला बैठता है
वो मन से और
ज्यादा कर्म बनाता है। इस बात
को अच्छी तरह से
समझना होगा कि हमें कर्म करने से
बचने
की नहीं बल्कि कर्म करने के भाव
को बदलने की जरूरत
है।
जब हम यह सोच कर कर्म करते हैं
कि मैं कुछ कर
रहा हूं, तब फल की इच्छा जन्म
लेती है और
यही मुक्ति में बाधा बनती है। जब
हम भाव को बदलकर
कर्म से बिना जुड़े अनासक्त भाव से
कर्म करते हैं
तो फल की इच्छा खुद-ब-खुद खत्म
हो जाती है और
मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लेखक-- समीर महाजन
कुछ भी सम्भव
नहीं। थोड़ा पढ़-लिख कर
व्यक्ति सोचता है कि कर्म
करूंगा तो फल मिलेगा, वो फल इस
जन्म में या अगले
जन्म में भोगना पड़ेगा। इससे
अच्छा है कि कर्म
ही ना करूं, फिर फल
नहीं मिलेगा और इस
तरह मैं मुक्त
हो जाऊंगा। जबकि भगवान कह रहे
हैं कि कर्म किए
बिना न तो योग
सिद्धि मिलेगी और न ही मुक्ति।
उनका साफ संदेश है कि हमें कर्म बंद
नहीं करना है।
निठल्ला या खाली होकर
नहीं बैठना है,
क्योंकि जो निठल्ला बैठता है
वो मन से और
ज्यादा कर्म बनाता है। इस बात
को अच्छी तरह से
समझना होगा कि हमें कर्म करने से
बचने
की नहीं बल्कि कर्म करने के भाव
को बदलने की जरूरत
है।
जब हम यह सोच कर कर्म करते हैं
कि मैं कुछ कर
रहा हूं, तब फल की इच्छा जन्म
लेती है और
यही मुक्ति में बाधा बनती है। जब
हम भाव को बदलकर
कर्म से बिना जुड़े अनासक्त भाव से
कर्म करते हैं
तो फल की इच्छा खुद-ब-खुद खत्म
हो जाती है और
मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लेखक-- समीर महाजन
संजय जी
जवाब देंहटाएंआभारी हु आपका इस मंच पर मेरी रचना लाने
के लिए !!
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंसच है कर्म से ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
साभार !