हर और आग थी,
जलन थी,
धुआँ...
बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?
लेखक-- कुंवर जी
जलन थी,
धुआँ...
बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?
लेखक-- कुंवर जी
सुन्दर प्रस्तुति...
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