ब्लौग सेतु....

17 अप्रैल 2014

गज़ल



आदमी!
क्या था क्या हो गया कहिए भला ये आदमी।
सीधा-सादा था, बन गया क्यों बला आदमी।।
अब भला खुलूस है कहां, जहरभरा है आदमी।
आदमी के काम आता , है कहां वो आदमी।।
था देवता-सा, है अब हैवान-सा क्यों आदमी।
बनते-बनते क्या बना,इतना बिगड़ा आदमी।।
मोहब्बत,  वो दया, कहां भूल गया आदमी।
नेक बंदा था, स्वार्थ में फूल गया आदमी।।
प्रेम क्या है, हया क्या, भूल गया  आदमी।
था कभी फूलों के जैसा, शूल हुआ आदमी।।
प्यास ना बुझा सके, वो  कूल हुआ आदमी।
सुधारा ना जा सके, वो भूल हुआ आदमी।।
इनकी करतूतें देख के, हलकान हुआ आदमी।
गुरूर में ऐंठा, धरती का भगवान हुआ आदमी।।
बुराइयों का पुतला बना, गिर गया है आदमी।
सच कहें बिन मौत ही, मर गया है आदमी।।
है वक्त अभी खुद को जरा, संभाल ले आदमी।
वरना नहीं मिलेगा,दुनिया में सच्चा आदमी।।
-राजेश त्रिपाठी

3 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज भाई आपका आभार। मेरे विचारों को सराहा ये है आपका प्यार। यों ही देते रहें सुझाव। इससे बढ़ता है कुछ अच्छा लिखने का चाव। -राजेश त्रिपाठी

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  2. बुराइयों का पुतला बना, गिर गया है आदमी।
    सच कहें बिन मौत ही, मर गया है आदमी।।
    सुन्दर पंक्तियाँ आज के आदमी का बिलकुल जीवंत चित्रण कर दिया है आपने

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