दिलों में खुशी की कोंपल नहीं,
फिर ये मौसमे बहार क्यों है?
सूखे पड़े हैं पेड़ यहाँ,
इन्हें परिंदों का इंतज़ार क्यों है?
गुलों में शहद की बूँद तक नहीं,
इन्हें भौरों का इंतज़ार क्यों है?
दूरदूर तक दर्याये रेत है,
मुसाफिर तुझे पानी की तलाश क्यों है?
बेहरोंकी इस बेशर्म बस्तीमे ,
हिदायतों का शोर क्यों है?
कहते हैं,अमन-औ चैन का मुल्क है,
यहाँ दनादन बंदूक की आवाज़ क्यों है?
औरतको देवी कहते हैं इस देश में,
सरेआम इसकी अस्मत लुटती है,
मुल्क फिर भी खामोश क्यों है ?
लेखक -- क्षमा जी
फिर ये मौसमे बहार क्यों है?
सूखे पड़े हैं पेड़ यहाँ,
इन्हें परिंदों का इंतज़ार क्यों है?
गुलों में शहद की बूँद तक नहीं,
इन्हें भौरों का इंतज़ार क्यों है?
दूरदूर तक दर्याये रेत है,
मुसाफिर तुझे पानी की तलाश क्यों है?
बेहरोंकी इस बेशर्म बस्तीमे ,
हिदायतों का शोर क्यों है?
कहते हैं,अमन-औ चैन का मुल्क है,
यहाँ दनादन बंदूक की आवाज़ क्यों है?
औरतको देवी कहते हैं इस देश में,
सरेआम इसकी अस्मत लुटती है,
मुल्क फिर भी खामोश क्यों है ?
लेखक -- क्षमा जी
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंजिस मुल्क के बाशिन्दों की करनी और कथनी में इतना अंतर होता है ,वहाँ ऐसा ही होता है .
जवाब देंहटाएंखामोश रहने की आदत हो गयी है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
प्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं