किसी की परवाह करूँ तो मुसीबत बढ़ सी जाती है
कोई मेरी परवाह करे तो बेचैनियाँ बढ़ सी जाती है
चाहता हूँ जीवन में रहूँ अकेले, कुछ याद किये बगैर
सोचूं अलग तो कैसे जिन्दगी उदास जो हो जाती है
अभी तक सपनों में डूबा खुद को अंदाज रहा था
कभी उड़कर हंस रहा था तो कभी गिरे रो रहा था
पता चला मुझे हकीकत का, उस वक्त नही मगर
जब आँख खुली भी तो फिर सपनों में लौट रहा था
लेखक परिचय - प्रभात
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 14/06/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
शानदार
जवाब देंहटाएंमेरे इस #ब्लॉग #पोस्ट पर भी आपकी प्रतीक्षा रहेगी |
जवाब देंहटाएंhttp://kahaniyadilse.blogspot.in/2015/11/blog-post_24.html
यादों के बिना जीवन कहाँ होता है ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएं