आहटे नहीं है
उन दमदार कदमो के चाल की,
गुजरती है जेहन में ..
वो बोल
‘मैं हुँ न..
तुमलोग घबराते क्यों हो ?’
वो सर की सीकन और जद्दोजहद,
हम खुश रहे..
ये निस्वार्थ भाव कैसे ?
आप पिता थे..
अहसास है अब भी
आपके न होकर भी होने का
गुंजती है..
तुमलोग को क्या चाहिए ?
पश्चताप इस बात
न पुछ सकी
आपको क्या चाहिए..
इल्म भी हुई जाने के बाद,
एनको के पीछे
वो आँखे नहीं
पर दस्तरस है आपकी
sundar rachna............
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
प्रतिक्रिया हेतु आभार..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-06-2016) को "मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-2379) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सम्मिलित करने हेतु आभार..
हटाएंमैं हूँ न .... और सब चिंता मुक्त हो जाते हैं ... यही तो पिता होते हैं ...
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया हेतु आभार..
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