इसलिए की गिर न पड़ें आसमान से
घर में छुप गए हैं परिंदे उड़ान से
क्या हुआ जो भूख सताती है रात भर
लोकतंत्र तो है खड़ा इमिनान से
चंद लोग फिर से बने आज रहनुमा
क्या मिला है देश को इस संविधान से
जीत हार क्या है किसी को नहीं पता
सब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से
है नसीब आज तो देरी न फिर करो
चैन तो खरीद लो तुम इस दुकान से
झूठ बोलते में सभी डर गए मगर
सच नहीं निकलता किसी की जुबान से
गुनाहगार को लगे या बेगुनाह को
तीर तो निकल ही गया है कमान से
लेखक परिचय - दिगंबर नासवा
घर में छुप गए हैं परिंदे उड़ान से
क्या हुआ जो भूख सताती है रात भर
लोकतंत्र तो है खड़ा इमिनान से
चंद लोग फिर से बने आज रहनुमा
क्या मिला है देश को इस संविधान से
जीत हार क्या है किसी को नहीं पता
सब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से
है नसीब आज तो देरी न फिर करो
चैन तो खरीद लो तुम इस दुकान से
झूठ बोलते में सभी डर गए मगर
सच नहीं निकलता किसी की जुबान से
गुनाहगार को लगे या बेगुनाह को
तीर तो निकल ही गया है कमान से
लेखक परिचय - दिगंबर नासवा
उत्तम अभिवयक्ति और भावनात्मक स्तर उच्च कोटी एवम् ज्ञानवर्द्धक...
जवाब देंहटाएंजीत हार क्या है किसी को नहीं पता
जवाब देंहटाएंसब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से....(Y)
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 12/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
दिगंबर नासवा जी की हर रचना सामयिक चिंतन से युक्त होती हैं, उनकी रचनाएँ अंतःस्थल को झकझोरती हैं ... सार्थक रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व जनसंख्या दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंवाह ।
जवाब देंहटाएंआपका आभार संजय जी मेरी ग़ज़ल को यहाँ जगह देने के लिए और आप सब का भी बहुत बहुत आभार इसे पसंद करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंजीत हार क्या है किसी को नहीं पता
जवाब देंहटाएंसब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से...बहुत खूब
बहुत अच्छी ग़ज़ल...दिली दाद