तुम तक दिल के भावों को लाऊँ कैसे
तुमसे उल्फ़त है ये समझाऊँ कैसे
शब्दों में जो पूछा वो तो समझा है
नज़रों का मतलब लेकिन पाऊँ कैसे
मैंने मन में शक को ना हरगिज़ पाला
दिलबर का शक ख़ारिज करवाऊँ कैसे
जीवन पथ में मिल कर हमको चलना था
आधे रस्ते से अब मुड़ जाऊँ कैसे
मैंने बंधन को कर्तव्य ख़लिश समझा
मन में दूजे को मैं बिठलाऊँ कैसे.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
द्वारा एक मंच गुगल समुह पर...
दिनांक 7 अगस्त 2016
तुमसे उल्फ़त है ये समझाऊँ कैसे
शब्दों में जो पूछा वो तो समझा है
नज़रों का मतलब लेकिन पाऊँ कैसे
मैंने मन में शक को ना हरगिज़ पाला
दिलबर का शक ख़ारिज करवाऊँ कैसे
जीवन पथ में मिल कर हमको चलना था
आधे रस्ते से अब मुड़ जाऊँ कैसे
मैंने बंधन को कर्तव्य ख़लिश समझा
मन में दूजे को मैं बिठलाऊँ कैसे.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
द्वारा एक मंच गुगल समुह पर...
दिनांक 7 अगस्त 2016
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 08 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब ।
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