नव- प्रभात, नव-दिवस, , नव -वर्ष |
शरद ऋतू ,वसुंधरा की छटा निराली |
मन मयूर प्रफुल्लित करती शीतल पवन |
कलरव करते पक्षी , फैली चहुँ ओर हरियाली |
श्यामल श्वेत बदली की चादर ओढ़ धरा |
सूर्य की प्रथम किरण नव सन्देश लिए |
शुभ स्वागत हेतु प्रकृति खड़ी |
ज्यों प्रीतम के लिए प्रियतमा प्रति- क्षण जिये |
दूर क्षितिज पर गगन झुका धरा पर |
प्रेम रसपान की करता अभिलाषा |
धरा गगन के अनुपम मिलन से |
पूर्ण होती श्रृंगार - रस की नई परिभाषा |
शीतल मंद वायु में अपनी सुगंध मिलाते |
पुष्प पराग सदा भँवरे हैं पीते |
सदैव प्रसन्न चित ,करते मधु पान |
पर पुष्प सदा काटों में हैं जीते |
उड़ते पंख दूर नीलगगन में |
ज्यों धरती की शोभा बढ़ाये |
है हित इच्छा कि आपके जीवन में |
सदैव खुशियों की फसल लहराए |
नव वर्ष की इस मंगल बेला पर |
मुझ संग प्रकृति दे रही बधाई सन्देश है |
बीते वर्ष कोई भूल हुई हो अगर |
तो विनम्र क्षमा प्रार्थी हितेश है |
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31 दिसंबर 2015
शुभ नव वर्ष ..........हितेश कुमार शर्मा
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बहुत सुन्दर सामयिक रचना ...
जवाब देंहटाएंआपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!