ब्लौग सेतु....

7 दिसंबर 2015

केलेंडर बदल गया - शुभा

केलेंडर बदल 
गया 
     खूंटी वही है  
      रातें गुजरती हैं 
      तारीखें बदलती हैं
      कभी सोचा है
      कि हम कहाँ हैं
     खूंटी की तरह वहीँ
       या फिर तारीखों की तरह 
       आगे बढ़ रहे हैं  ।
     या फिर  पकड़े हैं 
     अपनी लकीर की फकीरी ।
  समय के साथ चलना सीखो
       आगे बढ़ के जीना सीखो 
करो समन्वय नई पीढ़ी के साथ
        चलों मिला कर हाथों से हाथ
      तभी तो होगी जीत तुम्हारी
       पाओगे ना कभी तुम हार 
  पथ के कंटक फूल बनेगें 
        राह बने सदा  गुलजार ।


1 टिप्पणी:

  1. समय के साथ खूंटे से चिपका रहना ठीक नहीं .....समय के साथ बदलाव जरुरी है ...
    बहुत सुन्दर रचना

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