बासंती को देखकर आम गये बौराय।
कोयल रगड़े गाल तब फूल रहे मुस्काय॥
कलियों पर होने लगी भौंरों की भरमार।
मौसम मीठा हो गया पेड़ गिराये लार॥
लंबे दिन के बाद जब आती प्यारी रात।
दुल्हन-सी सकुचा रही पूरी न होती बात॥
जीजा के व्यवहार से साली मालामाल।
देवर-भाभी साथ तब मौसम लाल-गुलाल॥
ससुरालों में हो रही दामादों की भीर।
बीते दिन को याद कर सास हुईं गंभीर॥
मन का पंछी पूछता कहाँ बनायें नीड़।
कविता प्यारी छोड़ती नहीं हमारी पीड़॥
कितने गये बसंत पर गई न मन की हूक।
प्यारे सुनता ही रहा कोयलवाली कूक॥
मौसम "गड़बड़" हो गया यारो उसके साथ।
दिल की बातें क्या कहूँ नहीं बढ़ाई हाथ॥
शंकर मुनि राय "गड़बड़"
shankermunirai@gmail.com
आपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 08/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 235 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।