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28 मार्च 2016

ये दुनिया (ग़ज़ल)

                                                                                    
हर रोज़ सबक सिखाती है ये दुनिया 
सताए हुए को और सताती है ये दुनिया 
तू सिर्फ अपना फ़र्ज़ निभाए जा 
वरना कहाँ अपना फ़र्ज़ निभाती है ये दुनिया  
क्यों दिल लगा कर बैठे हो इस जहाँ में 
सिर्फ झूठा प्यार जताती  है ये दुनिया 
चुप रहना ही अपना मुकद्दर समझो 
नहीं तो एक की चार सुनाती है ये दुनिया 
उम्मीद का  दामन छोड़ दे    दिल 
सिर्फ झूठे ख्वाब दिखाती है ये दुनिया 
माना कि  तेरा दिल पाक साफ  है 
सफ़ेद चादर पर दाग लगाती है ये दुनिया 
अपनी मुसीबतों से खुद ही लड़ेगा तू 
सिर्फ अपनी राह के कांटे हटाती है ये दुनिया 
कतरा कतरा मर जायेगा यहाँ पर 
सिर्फ शमशान तक पहुंचाती है ये दुनिया 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-03-2016) को "सूरज तो सबकी छत पर है" (चर्चा अंक - 2296) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. . कुछ देर जरूर अच्छा नहीं लगता लेकिन जो दुनिया की परवाह किये बिना अपना काम करते रहते हैं वे सुखी रह पाते हैं वर्ना जो दुनिया की बातों में एक बार आ गए तो फिर वह उसी में फंस के रह जाता है। .
    बहुत अच्छी रचना

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  3. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 256 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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