राजेश त्रिपाठी
किस कदर तब रिश्ते निभेंगे आप ही बतालाइए।
जब स्वार्थ दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।
जिंदगी में दिल से बढ़ कर हो गयी दौलत अभी।
नाते-रिश्ते इस जहां के जब इसी पर टिके हैं अभी।।
होठों पर नकली मुसकानें, दिल में नकली प्रीति ।
नकली चेहरा सामने रखते जग की यह है रीति।।
ऐसे में सच क्या पनपेगा आप ही बतलाइए ।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।
झोंपड़ी में है अंधेरा और कोठी मे दीवाली है।
कोई मालामाल तो कोई दामन ही खाली है।।
धरती पर जन्नत जैसी कोई जिंदगानी है।
कोई बस मुसलसल इक गुरबत की कहानी है।।
ऐसे में कोई क्या करे आप ही बतालाइए।
जब स्वार्थ दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।
रो रही सीताएं यहां दुष्टो के रावण राज में।
किस कदर हाहाकार है अब के समाज में।।
कुछ लोग निशिदिन चल रहे ऐसी चाल हैं।
देश की आबादी जिससे बेतरह बेहाल है।।
रंजोगम कैसे मिटेंगे आप ही बतलाइए।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।
जिंदगी जिनके लिए बोझ-सी है बन गयी।
मुसीबतों की कमाने गिर्द जिनके तन गयीं।।
कोई राहतेजां नहीं कोई किनारा है नहीं।
इन मजलूमों का यहां कोई सहारा है नहीं।।
ये जहां में कैसे जीएं आप ही बतलाइए।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।
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