ब्लौग सेतु....

2 नवंबर 2016

पिता.........नादिर खान
















वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….

वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….

वो समेटते रहे
बिखरे हुये पन्ने
हम सबकी ज़िंदगी के …..

हम सब बढ़ते रहे
उनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़ थे
फलदार
छायादार ।










-नादिर खान

2 टिप्‍पणियां:

  1. माँ पर तो में समझता हूँ करीब - करीब सभी कवियों ने लिखा हैं। पिता पर यूँ भी बहुत कम लिखा गया ।
    सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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