एक मुद्दत पहले गीली माटी में
घुटनों के बल बैठ कर
टूटी सीपियों और शंखों के बीच
अपनी तर्जनी के पोर से
मैनें तुम्हारा नाम लिखा था ।
यकबयक मन में एक दिन
अपनी नादानी देखने की
हसरत सी जागी तो पाया
भूरी सूखी सैकत के बीच
ईंट-पत्थरों का जंगल खड़ा था
और जहाँ बैठ कर कभी
मैने तुम्हारा नाम लिखा था
मनमोहक सा बोन्साई का एक पेड़ खड़ा था ।।
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
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