ब्लौग सेतु....

5 नवंबर 2016

"बोन्साई"

एक मुद्दत पहले गीली माटी में
घुटनों के बल बैठ कर
टूटी सीपियों और शंखों के बीच
अपनी तर्जनी के पोर से
मैनें तुम्हारा नाम लिखा था 

यकबयक मन में एक दिन
अपनी नादानी देखने की
हसरत सी जागी तो पाया

भूरी सूखी सैकत के बीच
ईंट-पत्थरों का जंगल खड़ा था
और जहाँ बैठ कर कभी
मैने तुम्हारा नाम लिखा था
मनमोहक सा बोन्साई का एक पेड़ खड़ा था ।।


XXXXX

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...