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13 अप्रैल 2017

अदालत में मदनलाल धींगरा की सिंह-गर्जना +रमेशराज




अदालत में मदनलाल धींगरा की सिंह-गर्जना 

+रमेशराज
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                अमृतसर जिले के खत्री कुल में धनी परिवार में  जन्म लेने वाले क्रान्तिकारी मदनलाल धींगरा पंजाब विश्वविद्यालय से बी.ए. पास कर आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए जब इंग्लैंड पहुँच गये तो विलायत का भोग-विलासी वातावरण उन्हें बेहद भा गया। वे छात्रों के साथ पढ़ायी कम, मौज-मटरगश्ती अधिक किया करते। वे बगीचों में बैठकर या तो पुष्पों को निहारते रहते या उनका समय मादक संगीत में अपनी टोली के साथ नृत्य करते हुए बीतता। उन्हीं दिनों उन्होंने अखबारों में समाचार पढे़ कि बंगाल में अपने वतन की आज़ादी के लिये खुदीराम बोस, प्रफुल्ल कुमार चाकी, कन्हाई लाल जैसे अनेक क्रान्तिवीरों की टोली अंग्रेजों के खून से होली खेल रही है। इन समाचारों को पढ़कर उनका मन भी जोश से भर उठा। वे भी अपने वतन हिन्दुस्तान के लिये कुछ कर गुजरने के लिये व्याकुल हो उठे। इसी व्याकुलता ने उन्हें क्रान्ति के अग्रदूत सावरकर से मिलने को प्रेरित किया। वे इंग्लैंड से ही क्रान्ति की आग को प्रज्वलित करने वाले क्रान्ति के मसीहा सावरकर से भारतीय भवनजाकर मिले और पराधीन भारत को मुक्त कराने के लिये सावरकर से अपनी बात कही। सावकर ने पहले तो इस नवयुवक  की ओर निहारा, फिर दल में शामिल करने से पूर्व परीक्षा लेने की बात कही। मदनलाल तुरंत इसके लिये राजी हो गये। फिर  क्या था सावरकर ने उनका हाथ जमीन रखकर एक छुरी उनके हाथ में आर-पार कर दी। मदनलाल इस वार की असह्य पीड़ा के बाबजूद चीखना तो दूर, केवल मुस्कराते रहे। इस प्रकार वे परीक्षा में सल हो गये तो सावरकर ने उन्हें अपने दल का सदस्य बना लिया।
        इस परीक्षा के कुछ समय बाद सावरकर ने एक अंगे्रज असर सर कर्जन वाइली को गोली से उड़ा देने का काम गरा को धींगरा सौंप दिया, जो भारत मंत्री के शरीर-रक्षक के रूप में इंग्लैंड में नियुक्त था तथा जिसने भारतीय-भवनके समानान्तर भारतीय विद्यार्थियों की एक सभा खोल रखी थी और इसी की आड़ में वह भारतीयों छात्रों की जासूसी कर अंग्रेज सरकार को उनकी गतिविधिायों का ब्यौरा भेजता था।
        एक दिन जब सर कर्जन वाइली किसी अंगे्रज असर से गम्भीर वार्ता कर रहे थे तो मौका पाकर मदनलाल ने पिस्तौल निकाल कर लगातार दो गोलियाँ दागकर वही खूनी फाग इंग्लैंड़ में खेला, जैसा खूनी फाग भारत के क्रान्तिकारी अंग्रेजों  के विरुद्ध भारत में खेल रहे थे। वाइली को गोली मारने के उपरांत धींगरा ने अपने को सहर्ष और सहज तरीके से अंग्रेज सिपाहियों के सम्मुख गिरफ्तार करा दिया।
        चूँकि घटना-स्थल पर ही धींगरा ने एक प्रतिष्ठित अंग्रेज असर को गोली मारकर उसकी हत्याकर गिरफ्तारी दी थी, अतः उन्हें अपने मृत्युदण्ड को लेकर किसी भी प्रकार का संशय नहीं था। इसीलिए जब उनके केस की सुनवाई कोर्ट में हुई तो बिना किसी भय और पश्चाताप के वे सिंह की तरह गरजते हुए बोले-‘‘जो सैकड़ों अमानुषिक फाँसियाँ और कालेपानी की सजाएँ हमारे देश में धूर्त्त अंग्रेजों के शासन में देशभक्तों को ही रही हैं,  उसका बदला लेना कोई पाप या अपराध नहीं। वाइली को मारने में मैंने अपने विवेक के अतिरिक्त किसी अन्य से सलाह नहीं ली है। पापी हुकूमत के इस नुमाइन्दे का रक्त बहाने पर मुझे कोई पश्चाताप नहीं है। एक जाति जिसे विदेशी संगीनों के साये में पराधीन कर कुछ न बोलने पर पांबदी लगा दी है,  उसी जाति के अपमान का बदला लेने के लिए मेरी पिस्तौल ने आग उगली है। यदि हमारी मातृभूमि पर कोई अत्याचार करता है तो अब हिन्दुस्तानी सहन नहीं करेंगे। हम हिंदुस्तान ही नहीं,  अत्याचारी अंग्रेज हमें जहाँ-जहाँ मिलेंगे, हम उन्हें मारेंगे। मेरी तरह की एक अभागी भारत माता की सन्तान जो बुद्धि और धन दोनों से ही कमजोर है, उसके सिवा अब और कोई रास्ता बचा ही नहीं है कि वह अपनी माता की यज्ञवेदी पर रक्त अर्पण करने से पूर्व उस साम्राज्य को भी लहूलुहान कर डाले जिसके खूनी पंजों के बीच भारतमाता कराह रही है। मैं जानता हूँ कि न्याय का ढोंग रचने के बाद यह कोर्ट मुझे फाँसी पर ही लटकायेगी। मैं अवश्य ही मरूँगा,  अतः मुझे अपनी शहादत पर गर्व  है। वंदे मातरम।’’
        अपनी शहादत पर गर्व करने वाले क्रान्तिवीर मदनलाल धींगरा के लिये आखिर वह दिन भी आ गया, जब 16 अगस्त 1909 को भारत माता का यह शेर सपूत हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ गया और इंग्लैंड से यह संदेश पराधीन भारत को दे गया कि वतन आजाद हो कर ही रहेगा।
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सम्पर्क- 15/109 ईसा नगर अलीगढ़।  मो. 9634551630

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