बचा लो मेरा हिंदुस्तान
राजेश त्रिपाठी
ऐ मेरे प्यारे खुदा ऐ मेरे भगवान, बचा लो मेरा हिंदुस्तान।
कुछ नासमझों की हरकत
से तेरे बंदे हैं बेहद हलकान ।। (बचा लो)
कुछ बंदे अकल के
अंधे करते हैं मनमानी।
भूल रहे इस देश के वासी हैं
पहले हिंदुस्तानी।।
जाति-धर्म के पचड़े में फंस करते हैं नादानी।
अपने ही भाई को मारें कैसे हैं ये प्राणी ।।
जाने किस गफलत में डूबे इनका खोया धर्म- ईमान। (बचा लो)
सबको बराबरी का हक देता अपना देश स्वतंत्र।
धर्म-कर्म की यहां आजादी ये ऐसा गणतंत्र।।
लेके लुकाटी निकल पड़े यहां अभी कुछ लोग।
लोगों के घर-द्वार जलाते बढ़ता जाता है रोग।।
रोके से भी नहीं रुक रही इन बड़बोलों की जुबान। (बचा लो)
कौन क्या पहने, क्या खाये है इसकी आजादी।
इसको लेकर जुल्म ढा रहे करते हैं बरबादी।।
चहुंदिशि हाहाकार मचा है टूट रहा
विश्वास ।
गणतांत्रिक देश की खातिर बुरा है यह एहसास।।
इससे ताशमहल से ध्वस्त हो रहे जनता के अरमान।। (बचा लो)
ड्रैगन आंख तरेर रहा है, पाक करे हरकत नापाक।
दुश्मनों से घिरा देश है जो करना चाहें इसको खाक।।
अपने भी कर रहे हैं ऐसा कि
देश हुआ है अशांत।
ऐसे में तो यही कहेंगे ये हैं बुद्धि से उद्भ्रांत ।।
समरसता के अमृत में विष घोलें ये हैं ऐसे अनजान।। (बचा लो)